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________________ सेव्यमान होता है। जिस प्रकार कल्पवृक्ष सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति करता है उसी प्रकार यह जयकुमार भी था। कवि ने राजा की कल्पवृक्ष से बडी ही मनोहारी उपमा दी है। उपमा का चमत्कार देखिए - वाग्मिताऽपि सिता यावद्रसिता वशिताभृतः। - भाष्यावली च दूतास्यालालेव निरगादियम्॥ प्रस्तुत श्लोक में काशी से हस्तिनापुर नगर में पहुँच कर दूत राजा जयकुमार को स्वयंबर में आमंत्रित करने के लिए आया तब राजा ने मिश्री के समान अपनी मीठी वाणी से उसका स्वागत किया। तदन्नतर दूत ने राजा के वाग्यव्यहार से आतिथ्य पाकर उसके मुख से लार के समान वाणी मुखरित हो गयी। अर्थात् दूत ने वक्ष्यमाण प्रकार से उत्तर दिया। कवि ने राजा की वाणी की उपमा मिश्री से दी है। इस पद्य में उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है। एक अन्य उदाहरण - पुष्पाभं हसितं यस्या भूयुगं चापसन्निभम्। दृश्यते तनुरेतस्याः पुष्पचापपताकिनी।। दूत सुलोचना के सोन्दर्य की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि इस कन्या की हँसी पुष्प की तरह प्रसन्नता एवं उज्जवलता कारक है। इसकी दोनों भौहें कामदेव के धनुष के आकार की है। इसकी देहयष्टि कामदेव की सेना तथा पताका की तरह है। . कवि ने सुलोचना के शरीर सौन्दर्य की समानता कामदेव की सेना से की है। अन्य उदाहरण देखिए - कर्बुरासारसम्भूतं पदमरागगुणान्वितम्। राजहंसनिषेव्यं च रमणीयं सरो यथा॥ जयकुमार जब काशी में स्वयंबर मण्डप में पहुँचे तब वह स्वयंबर 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 3/29 2. वही, 3/53 3. वही, 3/76 -
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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