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कवि इस श्लोक में राजा जयकुमार के शौर्य की प्रशंसा कपता हुआ करता है कि जयकुमार के डर से शेषनाग पाताल में जा छिपा । पीताम्बरधारी विष्णु समुद्र में सो गये । अथवा इस जगत में कौन ऐसा बचा हुआ है जो इनकी तरह बेजोड़ तेज वाला है।
इस श्लोक में अन्त्यानुप्रास का चमत्कार है । विष्टः विष्ट: "शिष्टः शिष्ट: ' यह शब्द अपनी ध्वनि से प्रभावित किये बिना नहीं रहते हैं । उपांशुपांसुलै व्योनि ढक्काढक्कारपूरिते ।
बलाहकबलाधानास्मयूरा मदमाययुः ॥
इस श्लोक में स्वयंबर हेतु ससैन्य जयकुमार के प्रस्थान का वर्णन किया गया है। उस समय उड़ी हुई धूल से व्याप्त आकाश जब नगाड़े की आवाज से पूरित हो गया, तो मेघ गर्जन के भ्रम से मयूर मतवाले हो उठे ।
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इसमें “प', प, ठ ठ ब ब य य, की आवृत्ति से छेकानुप्रस है । इसमें वर्ण नगाड़े सी ध्वनि करके चमत्कार उत्पन्न कर देते हैं ।
सामदाभविनयादरवादैर्धामनाम च वितीर्य तदादैः ।
आगतानुपचचार विशेषमेष सम्प्रति स काशिनरेशः ॥
स्वयंबर सभा में काशीनरेश ने समयोचित भाषण, मात्यदान, नमस्कार और आदरयुक्त नम्र वचनों द्वारा सुन्दर निवासस्थान देकर आगन्तुक लोगों का अत्यन्त भव्य स्वागत किया ।
यह श्लोक वृत्यनुप्रास का सुन्दर उदाहरण है । इसमें म, द, च आदि वर्णो की कई बार आवृत्ति हुई है ।
सकलः संकलज्ञमाप्तवान् अपि सम्प्रार्थयितुं जनः स वा । भगवान् भगवान्भिष्टुतो विपदामप्युत सम्पदामुत ॥
सभी लोग और वह माहारज अकम्पन भी भगवान् के पास जाकर स्तुति करने लगे। कारण भगवान् विपत्ति या सम्पत्ति में भगवान् ही है । अर्थात् विपत्ति में याद करने पर वे उसका उद्धार करते और सम्पत्ति में ऐश्वर्य, प्रतिष्ठित कर देते हैं ।
इस श्लोक में अनुप्रास की अनुपम छटा देखने योग्य है। इसमें सकल सकल, भगवान् भगवान्, पदा पदा शब्दों की आवृत्ति की गयी है । 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 3/111
2. वही, 5/6
3. सा. द., 8/88
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