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________________ 1. छेकानुप्रास - छेको व्यंजनसंघस्य सकृत्साम्यमनेकधा' - व्यंजनों के समुदाय की एक ही बार अनेक प्रकार की समानता होने को छेक अर्थात् छेकानुप्रास कहते हैं। 2. वृत्यानुप्रास - अनेकस्येकधा साम्यमसकद वाष्यनेकधा। एकस्य सकृदप्येष वृत्यनुप्रास उच्यते॥ अनेक व्यंजनों की एक ही प्रकार से समानता होने पर एक ही वर्ण की एक ही बार आवृत्ति होने पर या एक ही वर्ण की अनेक बार आवृत्ति होने पर वृत्यानुप्रास नामक शब्दालंकार होता है। 3. श्रुत्यानुप्रास - उच्चार्यत्वाद्यदेकत्र स्थाने तालुरदादिके। सादृश्यं व्यंजनस्यैव श्रुत्यनुप्रास उच्यते॥ तालू, कण्ठ, मूर्धा, दन्त आदि किसी. एक स्थान से उच्चारित होने वाले व्यंजनों की (स्वरों की नहीं) समता को श्रुत्यानुप्रास कहते हैं। 4. अन्त्यानुप्रास - व्यञ्जनं चेद्यथावस्थं सहाद्येन स्वरेण तु।. आवर्त्यतेऽन्त्ययोज्यत्वादन्त्यानुप्रास एव तत्।। पहले स्वर के साथ ही यदि यथावस्थ व्यंजन की आवृत्ति हो तो वह अन्त्यानुप्रास कहलाता है। इसका प्रयोग पद अथवा पाद आदि के अन्त में ही होता है। 5. लाटानुप्रास - शब्दार्थयोः पौरूक्तयं भेदे तात्पर्यमात्रतः लाटानुप्रास इत्युक्तो। . तात्पर्य भिन्न होने पर शब्द और अर्थ दोनों की आवृत्ति होने से लाटानुप्रास होता है। . जयोदय महाकाव्य में अनुप्रास गत चमत्कार - " रसातले नागपतिर्निविष्टः पयोनिधौ पीतपटः प्रविष्टः। . . अनन्यतेजाः एनरस्ति शिष्टः को वेह लोके कथितोऽवशिष्टः।। 1. सा. द., 10/3 2. वही, 10/4 3. वही, 10/5 4. वही, 10/ 6 5. वही, 10/ 7 6 . जयोदय पूर्वार्द्ध 1/9. 193 . 3030836965800046
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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