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सौधायतेऽयं समयः स्वपाता पुराकृतिस्ते वृतिरेव जाता। ध्वजत्यजत्वप्रकृतिः कृतिन् ते धियोऽधियोगं स्फुटतां यजन्ते॥ . जिनेन्द्रदेव के द्वारा जयकुमार को धर्मोपदेश।
हे कृतिन्! हे विचारशील! तुम्हारा यह समय आत्मरक्षाकारी है अतः अमृतपुर के समान है और जन्म से लेकर अब तक का तुम्हारा कार्य उसकी व्याख्या है। अथवा तुम्हारा यह समय प्रासाद के समान है, तुम्हारा अब तक का कार्य उसकी बाड़ी है। तुम्हारा अमरस्वभाव व उसकी ध्वजा है और तुम्हारी ध्यानविषयक बुद्धियां स्फूरित को स्वीकृत कर रही हैं।
____ अनुप्रासमय शब्दों से समय की उपयोगिता व अर्थ को प्रभावपूर्ण बनाया गया है।
कविर्मनीषी चारित्र चक्रवर्ती महाकवि आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज ने अपने जयोदय महाकाव्य में शब्दगत, अर्थगत, और शब्दार्थगत चमत्कार का निरुपण करके इस महाकाव्य से संस्कृत साहित्य जगत् को गोरवान्वित किया है। यह जयोदय महाकाव्य काव्य जगत के काव्यों की मणियों के हार के मध्य अनर्थ्यमणि के समान सुशोभित है।
1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध 27/3
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