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ने कहा कि अरे! आप क्या गोत्रिगुण बैल के तीन गुणों से सहित नहीं है, अर्थात् मैं तो एक ही गुण से सहित हूँ पर आ तीन गुणों से सहित है (पक्ष में गोत्री कुलीन मनुष्यों के गुणों से सहित है)
कवि ने श्लेष व वक्रोक्ति के माध्यम से शब्दों में चमत्कृति व अर्थ में सौम्यता उत्पन्न की है। शब्दार्थगत का ललित उदाहरण -
समुद्रसदसनादरतायामस्तु सज्जनाभिनर्मदायाम्। का निमज्जय हा निदाघभीतिर्या विलग्नके वलिप्रणीतिः॥
जिसके मध्यदेश में त्रिवलि रूप त्रिवेणी की रचना है जिसकी सुन्दर नाभि ही नर्मदा नदी है और जो समुदर के समीचीन आस्वादन में आदर भाव से युक्त है और जो हर्षसहित शब्द करती मेखला के विनय भाव से सहित है, उस सुलोचना में अवगाहन कर निद्धाधकाल ग्रीष्मऋतु का क्या भय रह जाता है ? अर्थात् कुछ नहीं। अथवा जो सज्जनाभिनर्मदाया - सज्जनों को सब ओर से सुख देने वाली रहती है, ऐसी सुलचोना में अवगाहन कर उसका संपर्क प्राप्त कर हानि देने वाले भय का कौन सा भय रह जाता है। अर्थात् कोई भी नहीं। शब्दार्थ का मनोहारी उदाहरण देखिए -
न भविनो दिवास इव शाश्वता मितिरहर्निशयोरिह सम्मता।
स्फुटमनाथ इतो नरनाथतां प्रमुदितो रुदितं पुनरीक्ष्यताम्॥ ___ संसार की स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि संसारी प्राणी के दिन भी सदा एक रुप नहीं है, उनकी स्थिति रात और दिन के समान मानी गई है। स्पष्ट देखा जाता है कि जो अनाथ है वह राज्यावस्था को प्राप्त हो जाता है और जो प्रमुदित है हर्ष का अनुभव कर रहा है, वह रुदन को प्राप्त हो सकता है।
सदा एक सा मनुष्य नहीं रहता है। कभी सुख दुःख रुपी चक्र का पहिया चलता रहता है।
अनुप्रास के द्वारा शब्द अर्थ में चमत्कार उत्पन्न हो रहा है। शब्दार्थ गत की एक और बानगी -
1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध 22/11 2. वही, 25/6
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