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करने वाले रतिपति कामदेव को नमस्कार हो। रचना का सर्वश्रेष्ट अधिकारी कामदेव ही हैं। यदि वह न हो तो सृष्टि ही बन्द हो जाये। यह कितने आश्चर्य की बात है।
यह शब्दार्थगत चमत्कार अदभुत है। शब्दार्थगत का एक अन्य उदाहरण - समागतां वामपरम्परायाः पीत्वा सुति कोमलरुपकायाम्।
तरङगभडगीतरलाभिनेतुर्जगाम जन्माथ च मानसे तु॥
सुलोचना को देखकर जयकुमार के मन में तरह - तरह के विचार हिलोरें लेने लगे।
मनोहर परम्परावली सुलोचना की सामने आयी रुचिर काया स्वरुप (धारा) को पीकर (प्रेमपूर्वक देखकर) जयकुमार के मन में नाना प्रकार के विचार उत्पन्न हुये। जैसे वार्ष ऋतु में जल धाराओं को पाकर मानस सरोवर में तरल तरङग उत्पन्न होते है।
___ कवि ने कितना स्वाभाविक वर्णन किा है। श्लेष के द्वारा शब्दों में रमणीयता आ गयी है तथा अर्थ की रमणीयता है। शब्दार्थगत की एक बानगी देखिए - विदमो न पदमोऽर्हति यत्र पाणेस्तुलां तु लावण्यगुणार्णवाणेः।
वृत्ति पुनर्वाञ्छति पल्लवस्तु तत्रेति बाल्यं परमस्तु वस्तु॥
जयकुमार सुलोचना के अंग प्रत्यक के सौन्दर्य के बारे में प्रशंसा करता है कि इसके हाथ अनुपम हैं। .
सुलोचना लावण्य (लावण्य का अर्थ सौन्दर्य है पर सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाये तो इसका अथ4 शरीर की वह चमक है जिसमें सामने स्थित वस्तु प्रतिबिम्बत हो। गुण की अन्तिम सीमा है, इसके हाथ की बराबरी जहाँ पद्य, जिसमें पैरों की शोभा हो नहीं कर सकता वहाँ पल्लव उसकी बराबरी करे तो यह उसकी नादानी है। क्योंकि उसमें तो केवल पद पैर का लव अंश पाया जाता है ऐसे में वह उसके हाथ की तुलना को कैसे प्राप्त कर सकता है। पैरों की अपेक्षा हाथों की कोलमता अधिक होती है - ऐसा हम समझते हैं।
1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 21/9 2. वही, 11/42
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