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________________ रुप तीनों मार्गो से गमन करने वाले सफेद घोड़े के द्वारा जयकुमार ने शीघर ही काशीपुरी को प्राप्त कर लिया जैसे सम्यग्दर्शन ज्ञान, चरित्ररुप तीन मार्गों से गमन करने वाले एवं चौदह गुण स्थानों को पार करने वाले शुक्ल ध्यान द्वारा शीघ्र ही मुक्ति प्राप्त कर ली जाती है। श्लिष्ट शब्दों के द्वारा जयकुमार का काशी पहुँचना मोक्षपुरी के समान बतला दिया है। श्लिष्ट शब्दों के सामर्थ्य से ही अर्थ प्रभावपूर्ण बन गया है। शब्दार्थगत की एक और बानगी दॉष्टव्य है - अनुनामगुणममुं पुनरहो रहोवेदिनी मनीषाभिः। न त्वाप सापदोषाऽप्यनङगरुपाधिपं भाभिः॥ सुलोचना ने स्वयंबर सभा में कामरुपाधिप राजा का वरण नहीं किया। क्या कारण था वह शब्दार्थ के द्वारा कवि ने बताया है कि कामरुपाधिप इस नाम से स्पष्ट हो रहा था कि यह अपने कामांग में गुप्त रूप से व्याधि संजोये हुए है। अतः आश्चर्य है कि अपनी विचारशीलता से गूढ रहस्य को जान लेने वाली निर्दोषरुपा उस सुलोचना ने उसे नामानुसार गुणवाला जानकर स्वीकार नहीं किया। वक्रोक्ति के माध्यम से शब्दार्थ सश्त हो गया है। शब्दार्थगत का ललित उदाहरण देखिए - कौतुकानुकलितालिकलापाऽऽ मोदपूरितधरामगुरूपा। तत्स्वयंबरवनं निजगामासो वसन्तगणनास्वभिरामा। सुलोचना के लिए काशी में स्वयंबर सभा का आयोजन किया जाता है। सुलोचना जिनेन्द्र देव की पूजा करके स्वयंबर मण्डप में आती है। कवि ने उसकी समानता बसन्त ऋतु से की है। ' बसन्त की समानता रखने वाली वह सुलोचना उस स्वयंबर मण्डप रुपी वन में पहुँची। क्योंकि बसन्तऋतु फूलों पर मंडराने वाले भौरों से युक्त होती है तो सुलोचना भी कौतुक भरी अपनी सखियों को साथ लिये थी। इसी तरह बसन्त फूलों के पराग से धरातल को पुरित कर मृदुरुप बना देती है तो सुलोचना भी सबको प्रसन्न करने वाली थी। शब्द व अर्थ दोनों में ही चमत्कृति के दर्शन होते हैं। एक और 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 6/31 2. वही, 5/64 1183
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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