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________________ शब्दार्थगत चमत्कार का ललित उदाहरण अशोक आलोक्य पतिं यशोकं प्रशान्तचित्तं व्यकसत्सुरोकम् । रागेण राजीवदृशः समेतं पादप्रहारं स कुतः सहेत ॥ मुनिराज के आगमन को देखकर प्रशान्तचित्त यह अशोक वृक्ष निःसंकोच स्वयं ही विकसित होता हुआ अनुरागवश कमलनयना नामिनी द्वारा किये जाने वाले पाप्रहार को कैसे सह सकता है ? यहाँ पर कवि ने विभावना अलंकार के द्वारा शब्दों में रमणीयता लायी है तथा अर्थ भी रमणीय है । अतः यहाँ शब्दार्थगत चमत्कार है। - शब्दार्थगत चमत्कार का एक अन्य उदाहरण पद्भ्यामहो कमलकोमलतां हसद्भयां किं कौशलं श्रयसि कौशलमा श्रयद्भयाम् । वैरीश - वाजि - शफराजिभि - रप्यगम्यां श्री देहली नृवर नः सुतरामरं यान् ॥ जयकुमार की सभा में जब काशी नरेश का दूत स्वयंबर का सन्देश लेकर आता है । तब जयकुमार उससे वहाँ आने का कारण पूछते हैं हे मनुष्य श्रेष्ठ ! हमें आश्चर्य होता है कि कमल की कोमलता को भी हँसने वाले सुकोमल चरणों से रास्ते में काटों पर चलकर आने वाले आप शत्रुओं के घोड़ों के खुरों से भी अगम्या हमारी व्रजमयी देहली पर शीघ्रतापूर्वक आसानी से चलकर आ पहुँचे, ऐसी कौन सी कुशलता रखते हैं । इस श्लोक में यमक और अनुप्रास के द्वारा शब्दों में चमत्कार उत्पन्न होता है । अर्थ साम्य की दृष्टि से अर्थमय चमत्कार प्रभावशाली है । 1 शब्दार्थगत का ललित उदाहरण महीमघोनः सुतरामघोनः समागमो नर्मलमागमो नः । भवादृशो भात्यथवा दृशोऽपि यतोऽधुना निष्फलता व्यलोपि ॥ काशी नरेश का दूत जयकुमार की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि पृथ्वी के इन्द्र आप सरीखे महानुभाव का पापरहित पापों का नाश करने वाला समागम ही हम लोगों के लिए अत्यन्त प्रसन्नता देने वाला मनोविनोदकारी होता है । कारण इस समय दृष्टि की भी सारी निष्फलता लुप्तप्राय हो गयी है । 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1/84 2. वही, 3/27 3. वही, 3/32 181
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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