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________________ अर्थगत चमत्कार का एक और निदर्शन देखिए - धात्रा कृतास्याः प्रसृताच्छलेन प्रेडखाभरुस्तम्भमयीत्यनेन। स्फुरत्पदाडंगुष्ठनखाशुराजिरन्तो रतेश्चानुवदेत्समाजी॥ जयकुमार सुलोचना के रुप सौन्दर्य के बारे में सोचता है कि इस विधाता ने इस सुलोचना की जङधाओं के बहाने दो स्वर्णस्तम्भ और उनके बीच में उसके पैरों के चमचमाते अँगुठों की किरणों को रस्सी बनाकर रतिकामदेव की पत्नी के झूलने के लिए एक झूला तैयार कर दिया है। इसे सामाजिक व्यक्ति भी कहें कि यह रति का अनोखा झूला है। अर्थगत चमत्कार के द्वारा सुलोचना की जड्घाओं का बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। अर्थ साम्य की दृष्टि से इसका चमत्कार अवलोकनीय है। कुसुमाञ्जलिभिर्घरा यवारेरुभयोर्मस्तक चूलिकाभ्युदारैः। जनता च मुदञ्चनैस्ततालमिति सम्यक् सकरोपलिब्धकालः।। सुलोचना व जयकुमार के पाणिग्रहण संस्कार के विवाह मण्डप में लाया जाता है। वहाँ हवन कार्य आरम्भ करने के लिए अग्नि की ज्वाला उत्पन्न की गयी। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सारी पृथ्वी तो कुसुमाञ्जलि से परिपूर्ण हो गई और वरवधू की ललाट रेखा उदार ज्वारों से परिपूण हो गई तथा रोमा चों के द्वारा सारी जनता व्याप्त हो गई। इस प्रकार वह करोपलब्धिका काल वास्तविक कला की उपलब्धिका अर्थात् प्रसन्नता का काल हो गया। भाव यह है कि विवाह का समय परम शोभा को प्राप्त हुआ। इसका अर्थ मनोरम है। एक और ललित उदाहरण देखिए - पीत्वा दिवा श्रीमधुनस्तु पात्रं पूषा पुनलोहितमेत्य गात्रम्। क्षीवत्वमापन्न इवायमद्य समीहतेऽहो पतितुं विपद्य स्वयंबर के पश्चात् जब जयकुमार व सुलोचना और सेना हस्तिनापुर की ओर प्रयाण करते हैं तब वह एक वन में ठहरते हैं। वहाँ वे लोग सूर्यास्त के समय उसकी लालिमा को देखते हैं। सूर्य दिन भर कमल रुप मद्यपात्र को पीकर लाल शरीर को प्राप्त हो गया। मदिरापान के नशे से उसका शरीर लाल हो गया। जब वह इस समय 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 11/19 2. वही, 12/57 3. वही, (उत्तारार्ध) 15/14
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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