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________________ पानी नहीं देता, किन्तु पर्वत को पानी देता है। जो कि उसे बाहर निकाल देता है। अतः वह मेघ विचारशील नहीं है। जिसकी जिसकी आवश्यकता है उसको वही वस्तु प्रदान करनी चाहिए, यही बुद्धिमत्ता है। आपका मेरी पुत्री सुलोचना के साथ अनुराग है तो इसे आपको ही देनी चाहिए। इस मनोरम क्ति से अर्थ में चमत्कार आ गया है। अर्थगत चमत्कार का एक और उदाहरण - निशेन्दुना श्रीतिलकेन भालं सरोब्जबुन्देन विभात्यथालम्। महोदया अस्ति सुसम्पदेवं युष्माभिरस्माकमहो सदैव॥ पाणिग्रहण संस्कार के पश्चात् सभी बारातियों को अतिथि सत्कार व भोजन कराया गया व कन्यापक्ष वालों ने कहा कि - हे महोदयों बारातियों, जैसे चन्द्रमा द्वारा रात्रि तिलक के द्वारा ललाट और कमल समूह के द्वारा सरोवर शोभित होता है उसी प्रकार आप लोगों के द्वारा हम लोगों की सदा ही शोभा है। यहाँ कवि ने निदर्शना अलंकार के द्वारा बारातियों की शोभा का वर्णन किया है। अर्थगत चमत्कार से अर्थ इतना प्रभावपूर्ण बन गया है कि उसका चमत्कार दर्शनीय है। लपति काशि उदारतरडिगणी वसतिरपसरसामुत राडिगनी। भवति तत्र निवासकृदेषकः स शकुलार्भक ईश विशेषकः॥ . अकम्पन का सुमुख नामक दूत जब भरत चक्रवर्ती के पास आया, भरत चक्रवर्ती उससे अपना परिचय बताने के लिए कहा कि आप का क्या नाम है तथा आप कहाँ से आये हैं ? इस पर वह दूत काशी की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि हे नाथ! विशाल भागीरथी नदी से सम्पन्न यह काशी नगरी शोभित हो रही है (का जल या सुख, उसकी आशी आशावाली यह नगरी है) साथ ही यह परमसुन्दरी स्त्रियों और अप्सराओं की मनोरंजना नगरी है। वहीं रहनेवाला यह एक शकुला र्भक अर्थात् मछली का बच्चा है। दूसरे पक्ष में कल्याणमय कुल का बालक है, भगवान और आपका नाम अपने वाला है। अर्थ में रमणीयता है। 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 1 2/140 2. वही, 9/67 3032000683866666 3862530308888888
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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