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________________ 5 दिनों में लगभग दस लाख लोगों ने इस अमृत सिद्धि दर्शन महोत्सव में पधारकर इन अलौकिक/अनुपम रत्नमयी प्रतिमाओं का दर्शनकर जीवन सफल किया। इस महोत्सव की सबसे बड़ी राष्ट्रीय उपलब्धि यह रही कि इसी समय देश में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध चल रहा था। सैनिक मर रहे थे। मुनि श्री की प्रेरणा से इस युद्ध की शान्ति के लिए इन जिनबिम्बों का अभिषेक कर गन्धोदक भेजा गया, तीन दिन के अन्दर ही युद्धविराम हो गया। सारे देश में शान्ति साम्राज्य छा गया। राष्ट्र ने भी इन जिन बिम्बों के अतिशय को स्वीकार किया, नमन किया। इसी अवसर पर मुनि श्री के उद्बोधन से प्रभावित होकर महोत्सव कमेटी ने शहीद परिवारों की सहायता हेतु 11 लाख रुपये राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेंट किये। मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व में पहली बार धार्मिक महोत्सव समिति की तरफ से इतनी बढ़ी राशि राष्ट्र के नाम से प्राप्त हुई हैं। यह धर्म एवं राष्ट्र एकता का शुभ लक्षण है। पांच दिन तक निरन्तर धारावाहिक मुनि श्री क्षेत्र एवं इन जिनबिम्बों की ऐतिहासिक अतिशय के ऊपर महत्त्वपूर्ण प्रवचन हुए। सरकार ने इस महोत्सव में पूरा सहयोग दिया 500 पुलिसकर्मियों को तैनात किये, अलग से महोत्सव के लिए मजिस्ट्रेट नियुक्त किये। समिति द्वारा सारे जयपुर परिसर, मंडी, धर्मशालाओं, स्कूलों में लगभग 5000 कमरों की व्यवस्था की गई। लगभग 5 लाख लोगों की भोजन व्यवस्था की गई। इतना बड़ा जन सैलाब मैंने अपने जीवन में जैन समाज के किसी महोत्सव में कभी नहीं देखा। सम्पूर्ण कार्य पूर्णतः सफल हुए। इसी अवसर पर 23 एवं 24 जून 1999 को प्रख्यात अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद का ऐतिहासिक स्वर्ण जयंती अधिवेशन सम्पन्न हुआ। विद्वानों को मुनि श्री ने अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये। पूज्य महाराज जी के पदार्पण से सांगानेर मन्दिर की चतुर्दिल प्रगति हुई। अनेक प्रकार का निर्माण कार्य अब भी चर रहा है। विद्या के क्षेत्र में मुनि श्री ने क्रान्तिकारी कदम उठाया। जिन्होंने दिगम्बर जैन नसियां संघी जी के आधीन खाली पड़े 5 बीघा भूखण्ड पर सांगानेर में श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान की स्थापना कराई। इसमें महाकवि आचार्य ज्ञानसागर छात्रावास का नव निर्माण कार्य पूर्ण हो गया और इसमें लगभग 150 से अधिक छात्र रहकर लौकिक अध्ययन के साथ-साथ धार्मिक अध्ययन करके जैन संस्कृति की रक्षा में अग्रणी रहेंगे। इसी के समीप (13) 13 ० ००००००००००88888888888888885600000000MMANANMAMMeena
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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