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________________ उपर्युक्त चैत्यालय के दर्शन हजारों लोगों को कराए । इन्द्र भी इन अतिशयकारी जिनबिम्बों को देखकर प्रसन्न हो उठा और उसने जून की तपती हुई दुपहरी की मध्यान्ह बेला में मन्दिर परिसर में जल बरसाया, जिससे सभी नरनारी प्रसन्न हो उठे । इन्द्र द्वारा यह जलाभिषेक उनके हर्षातिरेक का कारण बना। अभिषेक के बाद पूज्य सुधासागर जी महाराज का मांगलिक प्रवचन हुआ, जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ थी । गर हो जनम दुबारा मानव जनम मिले। फिर से यही जिनालय जिनवर शरण मिले ॥ तीन दिन तक लाखों लोगों ने इस महातिशयकारी चैत्यालय के दर्शन किए व पूर्व संकल्पानुसार 15 जून 1994 को प्रातःकाल चैत्यालय को पुनः गुफा में विराजमान कर दिया। पाँच वर्ष बाद क्षेत्र कमेटी ने भूगर्भ चैत्यालय को निकालने की पुनः प्रार्थना की। कमेटी की प्रार्थना सफल हुई। जब मुनि श्री ने चैत्यालय को निकालने की स्वीकृति दी । चारो ओर हर्ष की लहर उमड़ पड़ी। 20 जून 1999 में दूसरी बार पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रातः 7 बजे प्रवेश किया। लगभग 45 / 50 मिनट के बाद मुनि श्री तीसरी मंजिल के प्रथम जिनालय के साथ-साथ अपनी साधना / तपस्याके बल पर चौथी मंजिल में प्रवेश कर दूसरा चैत्यालय भी निकाल कर लाये । चौथी मंजिल तक आज तक कोई भी प्रवेश नहीं कर पाया था। प्रथम बार मुनि श्री ही पहुँचे थे। दूसरे चैत्यालय में 32 रत्नमयी जिन प्रतिमाएं है। 9 फुट 11 इंची 20 खड़गासन 1 / 1.5 फुट विशाल पन्ना रत्न की आदिनाथ की प्रतिमा जी मनोहारी महाअतिशयकारी थी। 9 प्रतिमायें पदमासन छोटी-छोटी प्रतिमायें थी । सभी प्रतिमायें नाना रत्नों की थी । विश्व के सबसे अधिक प्राचीन महाअतिशयकारी जिन बिम्बों के दर्शन कराने वाले महामुनि श्री सुधा सागर महाराज को हम सब पाकर धन्य हैं। लाखों लोगों को उपर्युक्त चैत्यालय की मनोहारी प्रतिमाओं के दर्शन कर सौभाग्य प्राप्त हुआ । अ. भा. विद्वत परिषद के लगभग 150 विद्वानों ने इन ऐतिहासिक महा. अतिशयकारी प्रतिमाओं के दर्शन अभिषेक कर अपने जीवन को धन्य किया। सभी विद्वानों ने इन प्रतिमाओं को अतिप्राचीन एवं महा अतिशयकारी बताया । रात दिन दर्शनार्थियों का ताँता लगा रहा। पूरे 24 घण्टे आसानी से दर्शन हो सकते थे। दर्शनार्थी यात्रियों की निरन्तर हजारों की संख्या में दीर्घावधि तक कतार मैंने इसी जैन मन्दिर में देखी। 12
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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