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________________ कवि ने जयकुमार के गुणों का चार स्त्रियों के माध्यम से सुन्दर निरुपण किया है। इसका अर्थगत चमत्कार गम्भीरर्यपूर्ण है । एक अन्य उदाहरण द्रष्टव्य है I - दीपस्तमोमये गेहे यावन्नोदेर्ता भास्करः । स्नेहेन दीपयतां तावत् का दशा स्यात्पुनः प्रगे ॥' अन्धकारमय घर में रखा दीपक तेल द्वारा तब तक चमकता रहे जब तक सूर्य का उदय न हो, किन्तु सबेरे सूर्य का उदय हो जाने पर उसकी क्या दशा होगी ? जिस प्रकार अन्धकार में दीपक की उपयोगिता है लेकिन जब अन्धकार दूर हो जायेगा तो उसकी कोई उपयोगिता नहीं रहेगी। क्योंकि सूर्य की रोशनी के आगे दीपक का प्रकाश नगण्य हो जाता है । कवि ने इसका अर्थगत चमत्कार बहुत प्रभावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया अर्थगत चमत्कार की और बानगी अपि हठात् परिषज्जनुषां मुदः स्थलमतिव्रजतीति विधुन्तुदः । जनतया नतया स समर्च्यते किमु न किन्तु तमः परिवर्ज्यते ॥ अर्ककीर्ति जब जयकुमार से पराजित हो जाता है तो अकम्पन महाराज अर्ककीर्ति को समझाने लगते हैं । आप सोचते होंगे कि मेरा निरादर हो गया, किन्तु आपका निरादर नहीं हुआ। देखिए राहु हठ में पड़कर कमलों की प्रसन्नता नहीं होती, बल्कि दुनिया उसको बुरा बताती है और विनम्र हो सूर्य का ही आदर किया करती है । कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार राहु ने नेक कार्य किया लेकिन उसको उसका श्रेय नहीं मिला उसी प्रकार तुमने अच्छा कार्य किया है लेकिन इसका श्रेय जयकुमार को मिल गया । अर्थ में लालित्य है । मानसस्थितिमुपेयुषः पद-पदमयुग्ममधिगत्य तेऽप्यदः । ईश्वरान्तरलिरेष मे सतः सौरभावगमनेन सन्धृतः ॥ महाराज अकम्पन ने अपनी पुत्र अक्षमाला का विवाह अर्ककीर्ति के 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 7/30 2. वही, 9/15 3. वही, 9/91 174
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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