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• सुलोचना का सौन्दर्य देखकर जयकुमार के शरीर में सात्विक भाव के कारण रोमांच अथवा स्वेद बिन्दुएँ झलकने लगती थी। उससे ऐसा प्रतीत होता था कि उसने असफलता - निष्फलता को छोड़कर सार्थकता प्राप्त की है अथवा मोती ही धारण किये हैं।
शब्द सौष्ठव से चमत्कार की छटा अनुपम है।
शब्दगत चमत्कार एक और उदाहरण द्रष्टव्य है - विहृत्य चान्या अपि तीर्थभूमिकाः सुसकुचदुष्कृतकर्मकूर्मिकाः।
मनः पुनस्तस्य बभूव भूपतेर्महामतेः श्रीपुरुपर्वतार्चने॥ ... सुलोचना व जयकुमार को जब अपने पूर्व भावों का स्मरण होता है व विद्याओं की प्राप्ति होती है, उसके पश्चात् वे दोनों सभी पर्वतों पर होते हुए कैलाश पर्वत पर पहुँचते हैं। . .
जिनमें पाप कर्मरुपी कछुए, अत्यन्त संकोच को प्राप्त हो जाते हैं, ऐसी अन्य तीर्थ भूमियों में भी गमन करने के बाद बुद्धिमान राजा जयकुमार का मन कैलाश पर्वत की पूजा करने में तत्पर हुआ।
शब्दों के माध्यम से जयकुमार की मनोदशा का वर्णन बहुत ही प्रभावपूर्ण
शब्दगत की अनुपम छटा देखिए - त्वदीयपादाम्बुजराजभाजां भुवां भवन्तीह महः समाजाः। सुमानि सम्प्राप्य सुगन्धिमन्ति सोगन्ध्यमारान्नृशयं नयन्ति।।
जयकुमार व सुलोचना ने कैलास पर्वत पर विचरण किया, व उसके पश्चात् स्नान करके जयकुमार जिनन्द्र देव के मन्दिर में भगवान् की स्तुति करते हैं -
हे भगवान् ! आपके चरणरुपी श्रेष्ठ कमलों की सेवा करने वाली पृथ्वी के इस लोक में बहुत भारी उत्सवों के समूह उद्भूत होते हैं। यह ठीक है क्योंकि सुगन्धियुक्त पुष्प अपने संपर्क से मनुष्य के हाथ की सुगन्ध प्राप्त करा ही देते हैं।
जिस प्रकार सुगन्धित पुष्प को हाथ में लेने से हाथ सुगन्धमय हो जाता है उसी प्रकार आपकी सेवा से पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों का उद्धार हो जाता है। 1. जयोदयमहाकाव्य, उत्तरार्ध, 24/16 2. वही, 24/95
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