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जिस प्रकार समुद्र में तरगें उठती है, उसी प्रकार से अन्त:पुर में स्त्री रुपी तरंगे प्रसार कर रही थीं। विशिष्ट शब्दों में शाब्दिक सौन्दर्य दर्शाया गया
है।
शब्दगत की एक और बानगी द्रष्टव्य है -
सर्पिरर्पितमुख्यतिमानं सेन्दुकेन्दुदयितप्रणिधानम्। पाणिपद्य मृदु सद्य सुवेशाऽपूर्वमाप्य कुमुदे मुमुदे सा॥ प्रसाद में स्त्री की मनोहारी कल्पना की है।
सुन्दर वैषवाली किसी स्त्री ने जिसमें अपने मुख की प्रतिभा दीख रही है ऐसे घृतपात्र को, चन्द्रसहित समुद्र की कल्पना कर और हस्तकमलरुपी गृह मं रखकर अपूर्व आनन्द को प्राप्त किया।
शब्दों की चारुता से शब्दों में विशेष सौन्दर्य उद्गलित हो रहा है। स्त्रियों को काल्पनिक अनुभूति विशिष्ट है। शब्दगत चमत्कार विशिष्ट है। शब्दगत का ललित उदाहरण -
दन्तावलीमधरशोणिमसंभृदडका - ताम्बूलरागपरिणामध्यिाप्यपडकाम्।
या स्म प्रमाष्टिमुहुरादृतदर्पणापि .
लज्जा तयालिषु तु हास्यसमर्पणापि। जब स्वयंबर के पश्चात् जयकुमार, सुलोचना व सेना के साथ हस्तिनापुर की और प्रयाण करते हैं तथा रास्ते में एक वन में ठहरते हैं। वहाँ की क्रीड़ाओं का वर्णन हमें स्त्रियों की मनोदशा के माध्यम से पता चलता है।
__जो अधरोष्ठ की लालिमा से चिह्नित दन्तपक्ति को पान की लाली से युक्त समक्ष दर्पण ले बार बार साफ कर रही थी, इससे सखियों के बीच उसे लज्जित तथा हास्य का पात्र होना पड़ा।
शब्दों के द्वारा शब्दगत चमत्कार अद्वितीय है। शब्दगत का एक और चमत्कार -
___अनेकधान्यार्थकृतप्रवृत्तिर्जडाशयस्योद्धततां समत्ति।
हे शारदे! शारदवत्तवायः समस्तु मेघस्य विनाशनाया .
जयकुमार वन में प्रात:कालीन कृत्य करके पूजा - अर्चना करता है तथा सरस्वती जी की वन्दना करता हुआ कहता है कि - 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 10/106 2. वही, 18/10 2 3 .वही, 19/29
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