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का वर्णन किया है। जिससे शब्दों में चमत्कृति उत्पन्न हो गयी है । शब्दगत का ललित उदाहरण देखिए
प्रमाणितेयं सुदृशामघोनिका किलालयोऽप्यप्सरसामथाधिकाः । पुरन्दरेणोदयिनासमुत्तरमकम्पने ऽलम्बि पुलोममादरः ॥
यह बाला सुलोचना सुनयना सुन्दरियों के बीच पाप के विषय में कम है । इसलिए यह सुन्दर दृष्टि होने से इन्द्राणी की तरह है । इसकी सखियाँ भी निश्चय ही जल की तरह सरस हैं इसलिए चन्द्र से मिलने वाले रसण या आप्यायन से भी अधिक गुण वाली हैं । अतः अप्सराओं के बीच अधिक गुणवती हैं। उसने अपने सौन्दर्य से अप्सराओं को जीतकक पीड़ा से पीड़ित कर दिया है। उदित होने वाले जन समूह से यह नदर भी युक्त है। अतएव उदयशील इन्द्र से भी धिक आनन्दित है । अतएव लोगों ने इस अकम्पन राजा के विषय में पुलोम यानी इन्द्र के श्वशुर से भी अधिक आदर भाव धारण किया । .
शब्दों में चमत्कृति होने से शब्दगत चमत्कार है । शब्दगत का मनोहारी
उदाहरण
अर्कतापरिणतावतर्कता संयुतेन दधता यथार्थताम् । मेघमानितऋतो विनश्यता भातु तूलफलता त्वयोदृता ॥
जब स्वयंबर सबा में सुलोचना जयकुमार को स्वयंबर माला डालती है तो अर्ककीर्ति इससे भड़क उठता है और युद्ध को तैयार हो जाता है। जब अकम्पन यह सुनते हैं तो वे झगड़ा शान्त करने के लिए अपना दूत अर्ककीर्ति के पास भेजते हैं लेकिन उसका अर्ककीर्ति पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता, तब दूत कहता है
मैं तो समझता हूँ कि आप वास्तव में अर्ककीर्ति ( सूर्य के समान है ) जैसे आक मेघमानित वर्षा ऋतु में नष्ट हो जाता है और उसका जीवन फलरहित होता है वैसे ही आप भी मेघ कुमारादि द्वारा सम्मानित जयकुमार की ऋतु अर्थात् तेज में पड़कर नष्ट हो जायेंगे ।
शब्दों की विचित्रता से चमत्कार उत्पन्न होता है ।
शब्दगत की एक और बानगी द्रष्टव्य है
1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 5/88 2. वही, 7/69
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