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________________ राजन् वह बाला सुलोचना रसपूर्ण है इसलिए वह पुण्यरुप समुद्र की बेला की तरह सुन्दर है। उसने अपने चरणों से कमलों को जीत लिया। तब पल्लव में पात्रंता कहाँ हो सकती है ? ... .. ... उसके पैरों की शबोभा इतनी अनुपम है कि उसने कमलों को भी जीत लिया है। पल्लव तो पैरों के अंशमात्र होने से उनमें पैरों की बराबरी करने की बात सम्भव ही कहाँ ? कवि ने श्लेष व अनुप्रास की अनुपम छटा से शब्दों में रञ्जकता ला दी है। इसलिए यहाँ शब्दगत चमत्कार है। शब्दगत की और बानगी सातिसडकटतया नररांजां लडघनाशयविलम्बनभाजाम्। सन्ददो विचलदञ्चलपाकाऽऽहवाननं तु नृपसोधपताका।। काशी नरेश ने अपनी पुत्र सुलोचना के लिए स्वयंबर का आयोजन किया। उसमें जगत् के सभी स्वयंबर के लिए काशी आ गये, ऐसा लगता था कि कोई राजा शेष नहीं रहा है। उस समय मार्ग खचाखच भर गया था। अतः चलने की इच्छा रखकर भी आगे चल न पाने वाले राजाओं को राजमहल पर लगी पताका अपने अंचल से बला रही थी कि शीघ्र आओ। ... सुलोचना को पाने की इच्छा से सभी राजाओं को स्वयंबर में जाने की शीघ्रता थी। कवि ने शब्दों के माध्यम से बड़ा ही मनोहारी वर्णन किया है। . . , एक और उदाहरण - . . वयोभियुक्तेयमहो नवा लता कराधराज्रिष्वधुना प्रवालता। . . उरोजयोः कुड्मलकल्पकालता रदेषु मुक्ताफलताऽथ वागता॥ . जब सुलोचना स्वयंबर मण्डप में आती है तो राजाओं के मन में सुलोचना के प्रति अनेक विचार उत्पन्न होते हैं - . . यह सुलोचना नवीन लता है और बाल्यावस्था से रहित है, अतः यविावस्थारुपी पक्षी से युक्त है। इसके हाथ, होठ और चरमों में प्रवालता है, अर्थात् मूंगे की कान्ति के होकर कोपलों की याद दिलाते हैं। दोनों स्तन कुडमल सरीखे हैं और दाँत मुक्त फल अर्थात् मोती सरीखे चमकते हैं। कवि ने विशिष्ट शब्दमैत्री के माध्यम से सुलोचना के शारीरिक सौन्दर्य 1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 3/44 2. वही, 5/15 3. वही, 5/88 162
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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