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पञ्चम अध्याय शब्दगत, अर्थगत, और शब्दार्थगत
चमत्कार तथा जयोदय शब्दगत् चमत्कार की परिभाषा - जयोदय महाकाव्य में शब्दगत चमत्कार का बहुत प्रयोग मिलता है। शब्दगत चमत्कार वहाँ होता है जहाँ शब्दों में चमत्कृति हो तथा वह अपने शब्दों से लावण्य उत्पन्न करें, और जहाँ शब्दों में चारुता हो वहाँ शब्दगत चमत्कार होता है। शब्दों का समूह ही इसमें चमत्कार उत्पन्न करता है तथा वह ही प्रभावपूर्ण होता है।
__ आचार्य ज्ञान सागर जी ने जयोदय महाकाव्य में शब्दगत चमत्कार के माध्यम से काव्य में जान डाल दी है। जिससे उनका काव्य सशक्त बन पड़ा है।
शब्दगत् का सुन्दर उदाहरण देखिए - यशो विशिष्टं पयसोऽपि शिष्टं बिभर्ति वर्णोधमहो कनिष्टम्। तरां धराङ्के तव नामकामगवी च विद्वद्वर संवदामः॥'
काशी नरेश अकम्पन का दूत जयकुमार को स्वयंबर के लिए आमंत्रित करने के लिए आता है। जब जयकुमार उससे उसका परिचय पूछते हैं कि हे विद्वद्वर! हम आपसे पूछना चाहते हैं कि आपको नामरुपी कामधेनु इस धरातल पर कौन से आश्चर्य 'जनक अभीष्ट वर्ण समूह को धारण करती है, जो यथोविशिष्ट अर्थात् प्रख्यात तथा दूध से भी स्वादिष्ट है अर्थात्' आपका सुन्दर नाम क्या है ?
कवि की वचनभनी उक्त श्लोक से स्पष्ट शब्दों की वारुता अवलोकनीय
है।
__ सुकृतेपयोराशेराशेव सुरता तया। पदमो पि चेज्जितः पदभयां पल्लवे पत्रता कुतः॥.. काशी नरेश का दूत जयकुमार से सुलोचना के रुप सौन्दर्य की प्रशंसा करता हुआ कहता है कि -
1. जयोदयमहाकाव्य, पूर्वार्ध, 3/23
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