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चिन्तामणि रत्न को प्राप्त कर मनुष्य कृकृत्य हो जाता है । उसको सबसे अमूल्य वस्तु की प्राप्ति हो जाती है । उसी प्रकार है जिनेन्द्र भगवान् आपकी पूजा करके भक्त जन सब कुछ पा लेते हैं । वे अपने सभी मनोरथों को पूरा कर लेते हैं।
उत्तरार्द्ध में चमत्कार विगलित हो रहा है।
एक और उदाहरण देखिए
पादुकेवसति कण्टकाततेऽप्यस्ति चिज्जगति गुप्तये यतेः । अडिगनः स्वतलसादभासिनी दीपिकेव जगते प्रकाशिनी ॥
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जगत् के कण्टकों से व्यपात रहते हे मुनि की वृत्ति पादुका के समान रक्षा के लिए है । जिस प्रकार कण्टकाकीर्ण भूमि पर चलते समय पादुका रक्षा करती है, उसी प्रकार मुनि की बुद्धि रागरडग से भरे हुए जगत् में उनकी रक्षा करती है और संसारी मनुष्य की बुद्धि दीपक के समान यद्यपि जगत् के लिए प्रकाशित करती है, परन्तु अपने आपको प्रकाशित नहीं करती । दिया तले अंधेरा इस उक्ति को सत्य करती है
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संसारी मनुष्य की बुद्धि की दीपक से तुलना बड़ी ही मनोहारी है । दूसरी पंक्ति में चमत्कार उत्पन्न हो रहा है।
कवि अपनी बात को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए अपने वाक् वैदग्ध से पद के किसी एक देश में सूक्तियों की संयोजना करके उसमें अद्भुत रमणीयता का निदर्शन कर देता है । यह तथ्य इस महाकाव्य के अनेक श्लोकों में प्राप्त सूक्तदेशदृश्य चमत्कार से प्रमाणित होता है।
1. जयोदयमहाकाव्य 27/62
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