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गया। जैसे वर्षा ऋतु अंकुर उत्पन्न करती है, परन्तु फल देता है शरद ऋतु का आगमन।
___ जब बीज बोते हैं, बीज में अंकुर तब उत्पन्न होता है जब वर्षा का जल उसमें पड़ता है और वह बीज शरद ऋतु में पक कर फल बनता है। शरद ऋतु का आगमन हमें फल प्रदान करता है। उसी प्रकार अपने पिछले जन्म के कर्मो का फल इस जन्म में मिलता है।
सूक्ति की दूसरी पंक्ति में चमत्कार है - एक और उदाहरण देखिए -
एतादृगिद्धविभवेऽपि भवेऽध्रुवत्व मत्वाऽऽपतुर्न च मनाङ मनसा ममत्वम्। ।
धर्मे दृढावत सुतत्वमवाप्य सत्त्वं
स्थाने मनः प्रणयनं हि भवेन्महत्तवम्॥ इस प्रकार प्रसिद्ध वैभवशाली भव राजपर्याय में भी अनित्यता मान कर वे दोनों कुछ भी ममत्व भाव को प्राप्त नहीं हुए। किन्तु वास्तविक तत्व सम्यग्दर्शन प्राप्त कर धर्म में ढूढ़ हो गये। यही ठीक है, क्योंकि समुचित स्थान में मन का जाना ही महत्तपूर्ण होता है।
धर्म में प्रवृत्त होना ही महानता है। हमें उसी का अनुसरण करना चाहिए।
चतुर्थ पाद में सूक्ति गत चमत्कार है। एक अन्य उदाहरण देखिए -
त्वदीपादाम्बुजराजभायां भुवां भवन्तीह महः समाजाः। सुमानि सम्प्राप्य सुगन्धिमन्ति सौगन्ध्यमारान्नृशयं नयन्ति।
हे भगवान् ! आपके चरणरूपी श्रेष्ठ कमलों की सेवा करने वाली पृथ्वी के इस लोक में बहुत भारी उत्सवों के समूह उद्भूत होते हैं। यह ठीक है, क्योंकि सुगन्धि युक्त पुष्प अपने संपर्क से मनुष्य के हाथ को सुगन्धि प्राप्त करा ही देते हैं।
जिनेन्द्र भगवान् के चरणों के स्पर्श से यह पृथ्वी पवित्र हो गयी है। जिस प्रकार से पुष्प अपनी सुगन्धि को मनुष्य के हाथ में संक्रान्त कर देता है। उसी प्रकार जिनेन्द्र देव के प्रभाव से उत्सव हो रहे हैं। 1. जयोदयमहाकाव्य 23/84 2. वही, 24/95
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