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विचारवान मनुष्यों के समूह में थोड़ा बोलना रुचिकर होता है। यह सोचकर स्त्रियों के नूपुर उस समय चुप हो गये थे क्योंकि मूों के प्रसङग में मौन रह जाना ही हितकर होता है।
जब विद्वानों के समक्ष थोड़ा बोलना अच्छा है तब जलों-जड़ो के समक्ष तो बिल्कुल नहीं ही श्रेष्ठ होगा। यह विचार कर नूपुर की रुनझुन बंद हो गयी थी।
___ कवि ने बड़ी ही सुन्दर कल्पना की है। सूक्ति के चतुर्थपाद से काव्य सौन्दर्य विगलित हो रहा है।
एक अन्य निदर्शन अवलोकनीय है - यथोदयेऽहयस्तनमयेऽपि रक्तः श्रीमान् विवस्वन्विभ कमक्तः।
विपत्सु सम्पत्स्वीप तुल्यतेवमहो तटस्था महतां सदैव॥
श्रीमान् तथा ऐश्वर्य का एक भक्त अथवा पक्षियों के सद्भाव का प्रमुख भक्त सूर्य जिस प्रकार उदय काल में लाल होता है उसी प्रकार अस्त काल में भी लाल रहता है। बड़ा आश्चर्य है कि महापुरुषों की प्रवृत्ति संपत्ति
और विपत्ति में सदा एक समान रहती है। महापुरुष न सम्पत्ति में अनुरक्त होते हैं और न विपत्ति में उद्विग्न।
महापुरुषों व सूर्य की कवि ने बड़ी अनुपम तुलना की है। सूक्ति की दूसरी पंक्ति में चमत्कार दृष्टव्य है। एक अन्य श्लोक देखिए -
लयं तु भत्रैय समं समेति दिनं दिनेशेन महीयसेति। कृतज्ञतां ते खलु निर्वहन्ति तमामसुभ्योऽप्यमलास्तु सन्ति।
दिन, अपने पूज्य एवं स्वामी सूर्य के साथ ही नष्ट हो जाता है। ठीक ही है क्योंकि जो शुद्ध स्वभाव वाले होते हैं वे प्राणों से भी अर्थात प्राणों को देकर भी कृतज्ञता का अत्यन्त निर्वाह करते हैं।
जिस प्रकार से दिन सूर्य का साथ निभाता है जो सदाचारी मनुष्य हैं वह अपने प्राणों की चिन्ता नहीं करते। वह प्राणों की बाजी लगाकर कृतज्ञता का निर्वाह करते हैं।
दूसरी पंक्ति में सूक्तैकदेशदृश्य चमत्कार उत्पन्न हो रहा है। 1. जयोदयमहाकाव्य 15/2 2. वही, 15/3
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