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कौन ऐसा होगा ? जो स्वतन्त्रतापूर्वक रत्न छोड़कर काँच ग्रहम करेगा, सभी चाहे वह उसके योग्य हो या न हो सभी रत्न की अभिलाषा करते हैं।
___ इस सूक्ति के एक अंश से चमत्कार उत्पन्न हो रहा है। अतः यहाँ सूक्तेकदेशदृश्य चमत्कार है। एक और ललित उदाहरण देखिये -
__ सद्योऽपि कृतविद्योऽहमुद्योगेन जयश्रियम्। ..
मालाञ्चोपैमि बाहां हि नीतिविद्योऽभिनन्दति॥ अर्ककीर्ति कहता है कि मैं सब तरह से कुशल हूँ। अतः शीघ्र ही अपने उद्योग से विजय लक्ष्मी और वरमाला दोनों को प्राप्त कर लूंगा। क्योंकि नीतिमान् व्यक्ति अपनी भुजाओं का भरोसा करता है।
अर्ककीर्ति सुलोचना को पाने की इच्छा से सोचता है कि वह अरने बल से सुलोचना को प्राप्त कर लेगा क्योंकि कीर्तिमान् मनुष्य अपनी भुजाओं के बल से सब समर्थ होता है। उसके लिए कुछ भी असम्भ नहीं होता है क्योंकि वह बलवान् है।
इस श्लोक के दूसरे चरण में काव्य-सौन्दर्य प्रवाहित हो रहा है। एक अन्य उदाहरण दृष्टव्य है
साधारण धराधीशाब जित्वाऽपि स जयः कुतः।
द्विपेन्द्रो नु मृगेन्द्रस्य सुतेन तुलनामियात्॥ . यह जयकुमार साधारण राजाओं को जीतकर भी क्या वास्तव में पूर्ण विजयी कहा जा सकता है ? हाथी यद्यपि औरों से बड़ा है फिर भी क्या वह सिंह के बच्चे की बराबरी कर सकता है।
हाथी यद्यपि कलेवर की दृष्टि से अन्य पशुओं से बड़ा है। लेकिन वह सिंह के बच्चे से छोटा ही है औरों से युद्ध में वह जीत सकता है लेकिन वह छोटे से सिंह शावक से हार जाता है। उसी प्रकार अर्ककीर्ति अपने को सिंह का बच्चा तथा जयकुमार को हाथी मानता है।
क्या ही सुन्दर अभिव्यक्ति है ? एक रमणीय दृष्टान्त द्वारा उपर्युक्त श्लोक में सौन्दर्याधान पारित किया गया है। एक अन्य उदाहरण देखिए
1. जयोदयमहाकाव्य 7/31 2. वही, 7/49
0452-23685
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