SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 154
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक अन्य उदाहरण देखिये - तत्करोमि किल सा सहजेना रीपयेद्विमुगले तदनेनाः। चिन्तयेत पुरुमित्याभिराध्यं धीमतामपि धिया किमसाध्यम्॥ दुमर्ति कहता है कि आप लोग भगवान् पुरुदेव को याद करें। में वह उपाय करूंगा कि सुलोचना स्वयं ही स्वामी के गले में वरमाला डाल दे, ठीक ही है बुद्धिमान् के लिए कौन सा कार्य कठिन है। बुद्धिमान पुरुष सभी असंभव कार्य में चतुर होता है। उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। वह हर कार्य सरलता से कर सकता है। इस श्लोक के चतुर्थ पाद से चमत्कार उत्पन्न हो रहा है। एक और उदाहरण द्रष्टव्य है - ईदृशे युवगणेऽथ विदग्धे का क्षती रतिपतावपि दग्धे। नानृवर्तिनि रवो प्रतियाते दीपके मतिरूदेति विभाते। यदि कहा जाय कि कामदेव तो कभी का जल गया तो जहाँ इस प्रकार के सुन्दर राजा लौग विद्यमान है, वहाँ कामदेव की आवश्यकता की क्या है ? जैसे प्रातः काल के समय सूर्य के उदित होने पर दीपक को कौन याद करता है। अन्धकार में भी दीपक की आवश्यकता होती है। उसी समय उसकी उपयोगिता पता चलती है। प्रातः काल सूर्य के उदित होने पर वह नगण्य हो जाता है। उसी प्रकार सौन्दर्यवान राजा के होते हुए कामदेव को कोई नहीं याद कर रहा है। वैसे सौन्दर्य का देवता कामदेव को ही मानते हैं। इस श्लोक की दूसरी पंक्ति में चमत्कार है। इस चमत्कार की एक और बानगी देखिए - चकृषुर्जगत्प्रदीपात्तश्च तामुदयिनी सुवंशासाः। भानोरिव सोमकलां कुमुद्वतीकन्दसुकृताशाः।। उदय को प्राप्त होने वाली इस सुलोचना को वे शिविकावाहक लोग जगत के प्रदीप रुप उस राजा के पास से खींच कर ले गये जैसे कुमुद्वती के पुण्यांश चन्द्रमा की कला को सूर्य से खींच लेते हैं। स्वयंबर में शिविकावाहक सुलोचना को एक राजा से दूसरे राजा के 1. जयोदयमहाकाव्य 4/33 2. वही, 5/25 3. वही, 6/56
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy