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प्रत्येक मनुष्य को करणानुयोग शास्त्र का अध्ययन अवश्य करना चाहिए जिससे वह सुभ अशुभ परिवर्तन का ठीक से ज्ञान प्राप्त कर सके। क्योंकि जिस प्रकार सुवर्ण के खरे खोटे की परीक्षा कसौटी पर होती है उसी प्रकार करणानुयोग शास्त्र से ही काल आदि का ज्ञान होता है।
पार्थिवं समनुकूलयेत्पुमान् यस्य राज्यविषये नियुक्तिमान्। शल्यवद्रजति यद्विरोधितो नाम्बुधो मकरतोऽरिता हिता॥
मनुष्य को चाहिए कि जिस राजा के राज्य में निवास करता है उसको वह प्रसन्न बनाये रखने की चेष्टा करे। उनके विरुद्ध कोई काम न करे, क्योंकि उसके विरुद्ध चलना शल्य के समान हर समय दुःख देता रहता है। समुद्र में रहकर मगरमच्छ से विरोध करना हितावह नहीं होता। क्योंकि अगर मनुष्य उसके विरुद्ध चलता है तो उसका ही नुकसान है। वह उसे कभी भी नष्ट कर सकता है क्योंकि उसके पास शक्ति होती है।
यह पूरा श्लोक ही सूक्तिमय है। एक अन्य निदर्शन देखिए - अन्तरङगबहिरडगशुद्धिमान् धर्म्यकर्माणिं रतोऽस्तु बुद्धिमान्। श्रीर्यतोऽस्तु नियमेन संवशा मूलमस्ति विनयो हि धर्मसात्॥
बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि अंतरङग और बहिरङग शुद्धि को संभालते हुए धर्म कार्य में सदैव संलग्न रहे, जिससे लक्ष्मी सदा वश में बनी रहे, क्योंकि धर्म का मूल विनय ही है।
___ मनुष्य को चाहिए कि वह धर्म-कार्य में तत्पर रहे, क्योंकि धर्म का मूल विनय है। विनय नहीं है तो धर्म नहीं, धर्म नहीं तो लक्ष्मी नहीं, इसलिए मनुष्य को लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए धार्मिक कार्यों में लगे रहना चाहिए।
समस्त सूक्ति की ज्ञान वर्धक चमत्कार की वर्षा कर रही है। एक अन्य श्लोक देखिए -
धेनुरस्ति महतीह देवता तच्छकृत्त्प्रस्त्रवणे निषेवता। प्राप्यते सुशुचितेति भक्षण हा तयोस्तदिति मोयलक्षणम।
भारत वर्ष में गाय को माता के समान पूजा जाता है। गाय बहुत उत्तम देवता है, इसलिए उसके गोमय और गोमूत्र का सेवन करने वाला पुरुष
1. जयोदयमहाकाव्य, 2/70 2. वही, 2/73
3. वही, 2/87
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