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यह समस्त सूक्ति ही भावलावण्यरुप अमृत की मानो वर्षा कर रही है। एक अन्य उदाहरण देखिए -
शक्यमेव सकलैविधीयते को न नागमणिमाप्तमुत्पतेत्। कूपके च रसको प्यूपेक्षते पादुका तु पतिता स्थितिः क्षतेः॥ - सभी लोगों के द्वारा शक्य कार्य ही किया जाता है। नागमणि प्राप्त करने के लिए भला कौन प्रयत्न करेगा ? कुँए में पड़े चरस की सभी उपेक्षा करते है पर यदि जूती गिर जाय तो वह किसी से भी सहय नहीं होती अर्थात् सभी उससे घृणा करते हैं।
__ जूते के गिरने से उसका जल अपवित्र हो गया। अपवित्र वस्तु से सभी घृणा करते हैं क्योंकि वह सम्पूर्ण वातावरण को दूर्षित करती है। सभी लोग अच्छा कार्य करना चाहते हैं।
यह श्लोक समस्त सूक्तव्यापी का सुन्दर दृष्टान्त है। सम्मता हि महतां महान्वयाः संस्मरन्तु नियतिं दृढाशयाः। तात्रिकोष्टिनिरता पुनर्ववा नानन्तो हि परिपोषण गवाम्।
महापुरुषों से मान्य और उत्तम विचार वाले दृढचित्त लोग देव का स्मरण किया करें किन्तु गृहस्थ व्यावहारिक नीति ही स्वीकार करते हैं। क्योंकि गाय का पोषण केवल अन्नमात्र से नहीं हो सकता। उसको घास की भी आवश्यकता होती है।
__कवि ने गृहस्थ और गाय की बड़ी सुन्दर तुलना की है। गाय का पोषण घास के बिना नहीं हो सकता है उसी प्रकार गृहस्थ धर्म का पालन भी केवल व्यावहारिक नीति से नहीं हो सकता है।
समस्त सूक्ति में चमत्कार विद्यमान है। एक अन्य उदाहरण देखिए - सुस्थितिं समयरीतिमात्मनः सङगतिं परिणति तथा जनः। द्रष्टमाशु करणश्रुतं श्रयेत् स्वर्णक हि निकषे परीक्ष्यते।
मनुष्य सभी अवस्था, काल के नियम, अपनी संगति, शुभाशुभ परिवर्तन का ठीक ठीक ज्ञान प्राप्त करने के लिए करणानुयोग शास्त्रों का अध्ययन करे। क्योंकि सुवर्ण के खरे - खोटे की परीक्षा कसौटी पर ही की जाती है।
1. जयोदयमहाकाव्य, 2/16 2. वही, 2/11
3. वही, 2/47
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