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________________ लोग उसका अनुमान कर रहे थे उसका सेवन कर रहे थे। __वह लोग यह सन्देह कर रहे थे कि जल किस रुप का है। वह नदी का जल अनेक रुप वाला था। विचार करने पर जल का रुप समझ आता है। अतः यह श्लोक विचार्यमाणरमणीय का है। विचार्यमाणरमणीयत्व का रुचिर दृष्टान्त देखिए - शाटीमिता कुसुमितामसको विभात-सन्ध्याप्यवन्ध्यभवनाय सुभावितातः। मुञ्च क्षणं खलु विचक्षणदृक्तयात-स्तामीश्वरः सफलयेदिति तं कृपातः॥ इसमें प्रभात वर्णन किया है। यह प्रभात सन्ध्या भी सहज स्वभाव से सार्थकता प्राप्त करने के लिए कुसुमानीरंग की रंगी हुई लाल साड़ी को धारण कर चुकी है, इसलिए ईश्वर (राजा जयकुमार) अपने संयोग समीचीन योगदान से उस प्रभात सन्ध्या को सफल कर सकें। अतः अपनी विचारशील दृष्टि के कारण क्षण भर के लिए उन्हें छोड़ दें। जिस प्रकार स्त्री चतुर्थ स्नान के अनन्तर बांझपन का दोष नष्ट करने के लिए सहज स्वभाव से लाल साड़ी पहनती है, उसी प्रकार सन्ध्या ने भी अपनी निरर्थकता को नष्ट करने के लिए छाई हुई लाली के बहाने लाल साड़ी पहन रखी है। अतः उसे सार्थक करने के लिए वल्लभ - जयकुमार को छोड़े। लेखीभवत्यत्र सदाक्षलानां - समाश्रयायवमथाखलानाम्। यामो वयं ते खलु पत्रभाव-महो दयास्मासु महोदया वः।। इस पद्य में जयकुमार के द्वारा गंगा देवी को आभार प्रदर्शन किया गया है। अहो !हम लोगों के बीच आप महोदया है, आपकी जो दया है वह सज्जन मानवों के लिये देवता रुप है। इसलिए हम आपकी पगत्राणता को प्राप्त है, अर्थात् आपके चरणों में संलग्न है। अक्षरों के आश्रय के लिए आपकी दया लेखरुपता को और हम पत्ररुपता को प्राप्त है। आश्रय यह है कि हम लोगों पर आपकी जो दया है, वह अमिट अक्षरों के समान है। वह कभी भी न भूलने वाली ताम्रपत्र पर अडिकल स्वर्णाक्षरों के समान है। __ यह श्लोक विचार्यमाणरमणीय का उदाहरण है। विचार करने पर हमें गंगा देवी की दया की प्रतीति होती है। 1. जयोदय महाकाव्य, 18/14 2. वही, 20/75
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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