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उपस्थित होती है तो राजा जयकुमार उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करता हुआ कहता है
इस चन्द्रमा की भाँति मनोहर मुख तथा नख से भी सुशोभित वचनागोचर कान्ति से तथा अत्यन्त प्रशंसनीय स्वभाव से युक्त होने से यह सुलोचना रात्रि के समान है, जो चन्द्रमा से अलडकृत होती है, वर्णनीय उत्तम सूर्य से युक्त रहती है और कामियों के द्वारा प्रशंसनीय तमस्वभाव से युक्त होती है ।
यहाँ कवि ने सुलोचना की तुलना रात्रि से की है। जिस प्रकार रात्रि की सुन्दरता चन्द्रमा से होती है उसी प्रकार सुलोचना की सुन्दरता मुख तथा नख से अदभुत हो जाती है ।
यह श्लोक विचार्यमाणस्मणीय का सुन्दर उदाहरण है ।
जयोदय महाकाव्य से विचार्यमाणरणीयत्व का एक अन्य रुचिर दृष्टान्त दृष्टव्य है
लग्नाडगेषु च शुशुभे तेषां तावत्पुष्पप्रक रादेशाः । जगजिगीषोः स्मरस्य बाणोदिता लक्षवलना न तदा नो ॥
यह उस समय का वर्णन है जब स्वयंबर के पश्चात् येोग विदा होकर हस्तिनापुर जाते हैं तब बीच में गंगा तट पर स्थित एक वन में ठहरते है । इसमें युवक - यवतियों की वनक्रीड़ा का वर्णन है ।
उस समय नर नारियों के शरीर पर पर्याप्त मात्रा में पुष्प समूह ही जिसमें आदेश रुप था ऐसी जगत को जीतने के इच्छुक कामदेव के बाणों की लक्ष्य परम्परा अवश्य ही सुशोभित हो रही थी । पुष्प समूह से सुशोभित नर नारी ऐसे जान पड़ते थे मानो जगद्विजयी कामदेव ने उन्हें अपने बाणों का निशाना ही बना रखा हो ।
पृथुलहरितया मुरारिरुपं कमिति जना आत्मनः स्वरुपम् । सदिग्धादिग्धतया तद देवमयं चानुययुः ख्याततम् ॥
इस श्लोक में नदी के जल में स्त्री-पुरुषों की जल क्रीडा का सरस वणज्ञन किया गया है। इसमें नदी के जल किस प्रकार के हैं अनुमान किया
है ।
यह बड़ी-बड़ी लहरों से युक्त होने के कारण जल है अथवा स्थूल पुष्ट हरि विष्णु रुप होने के कारण मुरारि कृष्ण रुप है । अथवा क इस नाम सादृश्य के कारण आत्मस्वरुप है, इस प्रकार से देवरुप है मेघरूप है ऐसा समझकर 1. जयोदय महाकाव्य, 14/31
2. वही, 14/66
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