________________
मनुष्य का काल क्या बहुत भारी फल नहीं देता है ? अवश्य यहाँ दार्शनिक सौन्दर्य की प्रतीति विचार्यमाणरमणीयता से प्रतीत हो रही है।
अविचारितरमणीयता के अनेक सुन्दर दृष्टान्त पडिक्तयों में दष्टव्य हैंभवादभवान् भेदमवाथ चडगं भवः स गोरी निजमर्धभडगम्। चकार चादो जगदेव तेन गोरीकृतं किन्तु यशोमयेन। सुमना मनुजो यस्या महिला सारसालया। श्रीधरोऽधीश्वरो यस्याः सा काशी रूचिरापुरी। हृदये जयस्य विमले प्रतिष्ठिता चानुबिम्बिता माला। भग्नाभग्नतयाऽ भात् स्मरशरसन्ततिरिव विशाला द्विजराजतिरस्क्रियार्थमेतल्लप नश्रीरितिशिसणाय वेतः। द्रुतभक्षतमुष्टिनाथ यागगुरराडेनमता यद्विरानः।।
सुधाकरं श्री कलशं दयानाम्बरं वरं क्षालयतीव भानात्। __ तमोमलं हन्तुमथं क्षपेयं सायस्फुरत्फेनिलनामधेयम्। विषयरसाय दशा सकषाया शोच्या स्याद् विवशा या। गजस्येव कपटाभ्रमुकायां मनसो बहुलायापाया।। तृणवदुत्पणमेव पुरः पुर समुपदर्श्य च मादृग्यं नरः।
छगलवद्विपदे कविकृष्णया सपजि दूरमनायि च तृष्णया।। 8. समभूत समभूतरक्षणः स्वसमुत्सर्गविसर्गलक्षणः।
शिवमा नवमा नवक्षणः नृपतेरुतपवदुरस वलक्षणः।। 9. सुचिरं शुचिरद्य कुम्भनी स्थितिरस्यां न मयावलिम्बनी।
इतिधूपद्याढास्य धूमकच्छलतश्चोच्चलदेव मस्त्यका॥
विचार्यमाणरमणीय चमत्कार की परिभाषा - विचार्यमाणरमणीय वह चमत्कार है, जिसका विचार करने पर कल्पना व चमत्कार की प्रतीति हो जाये तथा मस्तिष्कीय व्यायाम के द्वारा जिसका स्वरुप समझ में आ जाये उसको विचार्यमाणरमणीय चमत्कार कहते हैं। यह चमत्कार विलम्ब से प्रतीत होता
विचार्यमाणरमणीयता का सुन्दर उदाहरण दृष्टव्य है -
असो कुमुदबन्धुश्चेद्वितेषी सुगृशो ग्रतः।
मुखमेव सखीकृत्य बिन्दुमित्यत्र गच्छतु। 1. जयोदय महाकाव्य, 1/15 2. वही, 3/30, 3. वही, 6/126 4. वही, 12/27 5. वही, 15/71 6. वही, 23/66 7. वही, 25/12 8. वही, 26/1- 9. वही, 26/54 10. वही, 3/51