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________________ प्रबल मार्ग के दर्शन होते हैं। कवि का उद्देश्य है कि मोक्ष की प्राप्ति सर्वोत्तम है। इससे मनुष्य सांसरिक बंधनों से छूट जाता है। __कथानक का वैशिष्टय इन सभी शिक्षा परक बातों से प्रभावशाली हो जाता है। जयोदय की कथा हमें ज्ञान देने वाली तथा सन्मार्ग की और अग्रसर करती है। यह ऐतिहासिक, पौराणिक महाकाव्य आचार्य ज्ञान सागरजी की अपूर्व शालीन काव्यत्व व प्रतिभा के बल से प्रख्यात कोटि में इसको गिना जाता है। आचार्य ज्ञानसागर द्वारा उत्पादित काव्य सौन्दर्य - महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी जैन संस्कृत साहित्य जगत् में 600 साल बाद प्रथम महाकवि है जिन्होंने महाकाव्य लिखने की परम्परा को नया जीवन प्रदान किया है। इन्होंने अनेकों काव्यों की रचना की। सभी काव्य इनकी अनुपम काव्य शैली से सजाये गये हैं लेकिन जयोदय महाकाव्य इन सबमें अग्रणी है। इन्होंने अपने काव्य में नवीन शैली का प्रयोग करके उसको उच्चकोटि की श्रेणी में ला दिया। इन्होंने काव्य सौन्दर्य के द्वारा आदर्श नीतियों को समाविष्ट करते हुए राष्ट्रीय चेतना, प्राचीन ऋषि मुनियों के आदर्श को प्रस्तुत करके काव्य - जगत् में कीर्ति स्तम्भ स्थापित किया है। अलकारों व रसों से भरा हुआ यह महाकाव्य किसके मन को आकर्षित नहीं करता अर्थात् सबके चित्त को आकर्षित करता है। जयोदय महाकाव्य की कथा सम्पूर्ण पुरुषार्थों को देने वाली है। तनोति पूते जगती विलासात्स्मृता कथा याऽथ कथं तथा सा। स्वसेविनीमेव गिरं ममाऽऽ रात् पुनातु ना तुच्छरसाधिकारात्॥ यह जयोदय महाकाव्य जगत् के काव्यों में मणियों के हार के मध्य अनर्थ्य मणि के समान सुशोभित है। महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी ने अपनी शब्द साधना के अलौकिक आनन्द को जयोदय महाकाव्य में चमत्कृत किया है। यह उक्ति प्रसिद्ध है कि जहाँ न जाए रवि वहाँ जाए कवि। कवि अपनी कल्पनाशीलता व लेखनी से असाध्य कार्य भी कर सकता है। उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। जयोदय की कथा वैसे तौ पौराणिक व महापुराण से ली गयी है लेकिन कवि ने उसे और प्रभावपूर्ण बनाने के लिए कुछ परिवर्तन किये है। 1. जयोदय महाकाव्यम, 1/4 105)
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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