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विशिष्ट हो गया है। .
जयोदय महाकाव्य को संस्कृत साहित्य के इतिहास में बृहत्रयी संजित शिशुपालवध, किरातार्जुनीय एवं नेषधीय चरित महाकाव्य के समकक्ष पाते हैं। इसे बृहत्रयी संज्ञित तीनों महाकाव्यों के साथ जयोदय महाकाव्य को सम्मिलित कर बृहदचतुष्टयी के अभिधान में संज्ञित करते हैं।
महाकाव्यों में जयोदय का अपना विशिष्ट महत्त्व है। कवि की अपनी उच्च शैली की वजह से ही जयोदय महाकाव्य को बृहद्चतुष्टयी की श्रेणी में रखते हैं।
आचार्य ज्ञानसागर जी ने काव्य को रोचक बनाने के लिए मूल कथा की कुछ घटनाओं को छोड़ दिया है। जैसे महापुराण में जयकुमार के पिता - माता व चाचा व चौदह भाइयों का वर्णन किया है। लेकिन ज्ञान सागर जी ने अपने महाकाव्य में जयकुमार के पिता के नाम का उल्लेख तो किया है।' लेकिन अन्य परिवार जनों का उल्लेख नहीं किया है। इससे वे एक तो अनावश्यक विस्तार से बचे हैं व उनका मूल उद्देश्य जयकुमार के गुणों को प्रधान रखना
जयकुमार ने जिन मुनिराज से कर्तव्य पथ हेतु जो धर्मोपदेश सुना है उससे उन्हें धर्मनीति और राजनीति आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। लेकिन . महापुराण मे सिर्फ शीलयुक्त मुनि के द्वारा उपदेश सुनने का ही उल्लेख है।
महापुराण में लिखा है कि सर्प दम्पत्ति ने जयकुमार के साथ मुनि उपदेश सुना' लेकिन जयोदय में एक सर्पिणी ने जयकुमार के साथ धर्मोपदेश सुना है।
महापुराण में अकम्पन की पत्नी सुप्रभा एक हजार पुत्र और सुलोचना एवं अक्षमाला नाम की दो पुत्रियों का वर्णन अकम्पन राजा के साथ किया गया है। जबकि जयोदय में हमें अकम्पन उनकी पत्नी का परिचय तब होता है जब काशी नरेश का दूत जयकुमार की सभा में सुलोचना के स्वयंबर का समाचार लाता है। किन्तु अन्य परिवारजनों का परिचय तो हमें संक्षिप्त में बाद में ज्ञात होता है।
1. महापुराण आदिपुराण भाग-2,.43/77-82 2. जयोदय, 6/112, 7/34 3.वही, 2/1-137 4. महापुराण आदिपुराण भाग-2, 43/90 5. जयोदय, 2/42 6. महापुराण आदिपुराण भाग-2, 43/127-135 7. जयोदय, 3/30,37,38 8. वही. 7/87-89
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