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जयकुमार के पास पहुँची तब विद्या देवी ने सुलोचना का चित्त जयकुमार के अनुकूल देखा तो उसने विस्तार पूर्वक उनके गुणों का वर्णन करना प्रारम्भ कर दिया। उसके गुणों को सुनकर सम्राट भरत के सेनापति और सोमदेव के पुत्र जयकुमार पर अनुरक्त सुलोचा ने जयकुमार के गले में जयमाला डाल दी । उसी समय नगाड़े आदि बजने लगे । जयकुमार का मुख सुलोचना को पाकर कान्तियुक्त हो गया, किन्तु अन्य राजाओं के मुखमण्डल म्लान हो गये । सप्तम सर्ग अर्ककीर्ति के सेवक दुर्मर्षण ने स्वयंबर समारोह के विषय में चक्रवर्ती के पुत्र के सामने जाकर वक्ष्यमान क्रम से उल्टा सीधा कहना शुरु कर दिया । जयकुमार के वरण को उसने काशी नरेश की पूर्व नियोजित योजना बताया तथा उसने कहा कि उसने आपको छोड़कर सोमदेव के पुत्र जयकुमार का वरण किया है। जयकुमार जैसे आपके कितने सेवक होंगे ।
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दुर्मर्षण के वचनों को सुनकर अर्ककीर्ति काशी नरेश व जयकुमार से युद्ध करने को तैयार हो गया परन्तु सुमति नाम के मन्त्री ने समझाया कि काशी नरेश व जयकुमार हमारे अधीनस्थ राजा हैं । अकम्पन तो आपके पिता के भी पूज्य है। उनसे युद्ध करना गुरुद्रोह होगा । किन्तु अर्ककीर्ति पर सुमति के वचनों का कोई भी असर नहीं हुआ । अर्ककीर्ति के युद्ध का समाचार महाराजा अकम्पन के पास पहुँचा । मन्त्रियों से सलाह लेकर उन्होंने एक दू अर्ककीर्ति को समझाने के लिए भेजा । किन्तु दूत के समझाने पर भी अर्ककीर्ति युद्ध से विरत नहीं हुआ । दूत ने जब आकर महाराज अकम्पन से युद्ध की सूचना दी तो महाराज अकम्पन चिन्ता ग्रस्त हो गये । महाराज अकम्पन को चिन्तित देखकर जयकुमार ने धीरत् बँधाया । तत्पश्चात् जयकुमार अर्ककीर्ति से युद्ध करने के लिए सन्नद्ध हो गये। यह देखकर अकम्पन भी अपने पुत्रों व सेना सहित युद्ध के लिए चल पड़े । अर्ककीर्ति भी अपनी सेना सहित युद्ध क्षेत्र में आ गये। दोनों सेनाओं ने रणभेरी बजाकर युद्ध की घोषणा कर दी ।
अष्टम सर्ग - दोनों सेनाएँ परस्पर एक दूसरे को युद्ध के लिए ललकारने लगी । गजारोही के साथ गजारोही, पदाति के साथ पदाति, रथारोही के साथ रथारोही अश्वारोही के साथ अश्वारोही परस्पर युद्ध करने लगे । सेना के द्वारा उठाई गई धूलि से दिशाएँ व्याप्त हो गई । जयकुमार तथा काशी नरेश के पुत्रों हेमाङ्गद आदि ने अपने प्रतिद्वन्द्वियों के साथ डटकर सामना किया। दोनों और से घमासान युद्ध चल रहा था । इसी बीच रतिप्रभदेव ने आकर जयकुमार को नाशपाश और अर्द्धचन्द्र नाम का बाण दिया । सच ही कहा गया है कि भव्य पुरुष का प्रभाव अनायास ही भाग्य को अनुकूल कर लेता है । जयकुमार ने इन
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