SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गया है । यह सन्देश कहकर दूत चुप हो गया। वहाँ का सन्देश सुनकर राजा जयकुमार प्रसन्न हो गये और उन्होंने अपने वक्षस्थल से हार उतारकर दूत को उपहार के रूप में दे दिया । तत्पश्चात् अपनी चतुरंगी सेना सजाकर काशी की ओर प्रस्थान किया । महाराज अकम्पन ने अपने परिवार के साथ आगवानी करके उनका स्वागत किया तथा उनके रहने की उचित व्यवस्था की । चतुर्थ सर्ग - काशी नरेश के यहाँ सुलोचना का स्वयम्बर समारोह हो रहा है, यह समाचार अयोध्या नरेश भरत ने सुना । भरत ने अपने पुत्र अर्ककीर्ति को यह समाचार सुनाया । यह सुनकर उनके पुत्र अर्ककीर्ति ने स्वयम्बर में जाने की इच्छा प्रकट की और पिता जी की अनुमति मांगी। उनके सुमति नाम के मन्त्री ने बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए ऐसा कहा । किन्तु दुर्मति नाम के मन्त्री ने जाने के लिए सहमति प्रकट की । यह विचार विमर्श चल रहा था कि काशी नरेश ने वहाँ पहुँच कर स्वयम्बर समारोह में आने का निमन्त्रण दिया । अपने मन्त्रियों से विचार विमर्श के पश्चात् अर्ककीर्ति स्वयम्बर समारोह का समाचार पाकर काशी पहुँचते हैं। उनका वहाँ यथोचित सत्कार के साथ ठहरने की समुचित व्यवस्था की जाती है । पंचम सर्ग स्वयम्बर समारोह में अनेक देश देशान्तर से राजकुमार सुलोचना का वरण करने की इच्छा से पहुँचे । काशी नरेश अकम्पन ने उन सबका यथोचित सत्कार किया। जैसे ही हस्तिनापुर का राजा जयकुमार सभी मण्डप में पहुँचे वैसे ही सभी राजाओं का मन उसे देखकर प्रतिद्वन्द्विता परिपूर्ण हो गया । काशी नरेश के भाई देव ने सुलोचना को सभा मण्डप में चलने का आदेश दिया। सुलोचना अपनी सखियों के साथ जिनेन्द्र देव की पूजा करने के लिए गयी। उसके बाद सभामण्डप में पहुँची । षष्ठ सर्ग - जब सुलोचना सभा मण्डप में पहुँची, तो सभी रजाओं के हृदय अन्तर्द्वन्द्व से परिपूर्ण हो गये । सुलोचना विद्या देवी नाम की परिचारिका के साथ मार्ग पर चलने लगी। इसके बाद विद्या देवी सुलोचना को वहाँ आये हुये भूमण्डल में सम्मानित राजाओं का एक-एक करके उनके गुणों का वर्णन करने लगी। वे राजा लोग भाँति भाँति के तर्क वितर्को के पात्र होने के कारण बड़े दयनीय थे। सबसे पहले विद्यादेवी ने सुनमि विनमि इन दो राजाओं का परिचय दिया। उसके बाद क्रम से भरत पुत्र अर्ककीर्ति तथा कलिंग, कामरुप, कांची, काबुल, अंग, बंग, सिन्धु, काश्मीर, कर्नाटक, मानव, आदि देशों से आये हुये राजाओं का गुणों से विस्तार किया। जब सुलोचना - 95
SR No.006277
Book TitleAacharya Kshemendra Dwara Pratipadit Chamatkaratva ke Pariprekshya me Aacharya Gyansagar Dwara Virachit Jayoday Mahakavya ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherDigambar Jain Dharm Prabhavna Samiti
Publication Year2001
Total Pages310
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy