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________________ | 53 अग्नि प्रदक्षिणा करके एक नया जीवन प्रारम्भ किया । यहाँ बारातियों के खान-पान का हास-परिहास से युक्त रोचक वर्णन हुआ है । त्रयोदशम सर्ग - जयकुमार द्वारा अपने नगर की ओर प्रस्थान करने का सातिशय विवेचन हुआ है । सुलोचना के माता-पिता, बन्धु आदि ने उन दोनों को अश्रुपूर्ण विदाई दी । जयकुमार ससैन्य प्रयाण करता है । मार्गस्थ (वन, गङ्गा) प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य भी प्रतिपादित किया गया है । गङ्गानदी की प्राकृतिक सुकुमार वन श्री एवं सुखद छाया से प्रभावित जयकुमार ने वहीं विश्राम किया । चतुर्दशम सर्ग - जयकुमार एवं सुलोचना द्वारा वनक्रीड़ा जयक्रीड़ा आदि से मनोरंजन किया गया । उन्होंने अत्यन्त पावन सुरसरि में अवगाहन करने के उपरान्त सूर्यास्त के समय नवीन वस्त्रों को धारण किया । पञ्चदशम सर्ग - सूर्यास्त के पश्चात्, सन्ध्या सुन्दरी के लावण्य ने सभी को प्रभावित किया, तदनन्तर तिमिर समूह ने प्रगाढ़ रूप धारण कर लिया किन्तु कुछ ही समय पश्चात् उसे विनष्ट करने वाले क्षमानाथ ने अपनी सुखद एवं शीतल चाँदनी बिखेर दी । इस मधुर बेला में स्त्री पुरुष आनन्दपूर्वक बिहार करने लगे। षोडषम सर्ग - इस सर्ग में स्त्री पुरुषों की विलासपूर्ण चेष्टाओं का निरूपण हुआ है । रात्रि के समय में मद्यपान एवं हास-परिहास करते हुए नर-नारी परस्पर नयननिक्षेप तथा प्रेम में दत्तचित्त हो गये । सप्तदशम सर्ग - स्त्री-पुरुष पृथक्-पृथक् एकान्त प्रदेशों में पहुँचे कर रतिक्रीड़ाएँ करने लगे । जयकुमार-सुलोचना भी सुरतक्रीड़ा करते हुए भावविभोर हो उठे । रात्रि के मध्य प्रहर में वे सभी निद्रासुख में मग्न हो गये । . अष्टादशम सर्ग - प्रभात होने पर दिनमणि भगवान् का उदय हुआ, सभी जन निद्रामुक्त होकर अपने दैनिक कार्य में संलग्न हो गये । एकोनविंशतितम सर्ग - जयकुमार भी स्नानादि क्रिया से निवृत होकर जिनेन्द्रदेव की पूजा एवं स्तुति में लग गये । विंशतितम सर्ग - इस सर्ग में अयोध्या के सम्राट भरत और जयकुमार के मिलन का निरूपण है । जयकुमार ने महाराज भरत से नम्रतापूर्व प्रमाण किया और तत्पश्चात् सुलोचना स्वयंवर का समग्र विश्लेषण किया । जयकुमार के वचनों से आश्वस्त होकर महाराज भरत ने काशी नरेश अकम्पन द्वारा अर्ककीर्ति के साथ अक्षमाला के विवाह कार्य सम्पन्न किये जाने की सराहना की । तदनन्तर जयकुमार भी महाराज भरत से सम्मानित होकर तथा उनकी ही अनुमति से हाथी पर आरूढ होकर अपनी सेना की ओर आता है- गङ्गा नदी में जयकुमार का अपहरण करने के लिए एक मछली उसके हाथी को पकड़ती है, जिससे जयकुमार अत्यन्त व्याकुल हो गया । इधर पति की प्रतीक्षारत सुलोचना भी यह समाचार सुनकर रोमाञ्चित हो गई और पति की रक्षार्थ जल में उतर कर सच्चे मन से प्रार्थना की उसके पति प्रेम के कारण गङ्गा का वेग कम हो गया और मछली ने भी जयकुमार को छोड़ दिया । यह दृश्य देखकर नदी के तट पर उपस्थित गङ्गा नाम की एक देवी ने सुलोचना का स्तुति की। तत्पश्चात् उसने
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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