________________
52
नरेश अकम्पन और जयकुमार को मारने के लिए तैयार हो गया, परन्तु सुमति नामक मन्त्री ने एक शुभचिन्तक की भाँति बहुत समझाया
यासि
सोमात्मजस्येष्टाकर्मकीर्तिश्च
-
हन्ताऽप्यनुचरस्य त्वं क्षत्रियाणां
वह मन्त्री जयकुमार को भरत का सेवक और काशीनरेश अकम्पन को पितवत् निरूपित करते हुए कहता है - इनसे युद्ध करना उचित नहीं । किन्तु अर्ककीर्ति पर सुमति के वक्तव्य का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। जब युद्ध न करने के सभी प्रयास विफल हो गये और अर्ककीर्ति नहीं माना तब जयकुमार भी अकम्पन सहित ससैन्य युद्धार्थ तैयार हो गया ।
-
शर्वरी शिरोमणिः ॥
अष्टम सर्ग - इस सर्ग में जयकुमार और अर्ककीर्ति के ससैन्य बहुविध युद्ध करने का चित्रण है । यहाँ सेनाओं की मोर्चेबन्दी और परस्पर प्रतिपक्षियों को समाप्त करने की दृढ़ता का विश्लेषण भी अङ्कित है । जयकुमार के रणकौशल के समक्ष साहस, बल, यश आदि में अर्ककीर्ति कमजोर पड़ गया । तदनन्तर रतिप्रभदेव द्वारा प्रदत्त नागपाश एवं अर्द्धचन्द्र नामक बाणों से अर्ककीर्ति बाँध दिया गया। इस प्रकार जयकुमार विजयी हुआ । विजयोपरान्त सभी ने जिनेन्द्रदेव की पूजा की ।
नवम सर्ग - जयकुमार के विजयी होने पर भी काशी नरेश अकम्पन चिन्तित होकर अर्ककीर्ति के पास गये और जयकुमार को क्षमा करने तथा अपनी द्वितीय पुत्री अक्षमाला को वरण करने का प्रस्ताव किया, जिसे वह स्वीकार कर लेता है । इस प्रकार अकम्पन की दूरदर्शिता और सूझबूझ से अर्ककीर्ति जयकुमार का मिलन हो गया और उनमें मित्रवत् एकता हो गयी इसके पश्चात् सुमुख नामक दूत को काशी नरेश ने चक्रवर्ती भरत के पास भेजा इस सन्देशवाहक ने भरत को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया और उनका आशीर्वाद एवं अनुशंसा लेकर पुनः काशी आ गया ।
दशम सर्ग - इस सर्ग में जयकुमार एवं सुलोचना के वैवाहिक कार्यक्रम का विश्लेषण हुआ है । महाराज अकम्पन ने इस अवसर पर सम्पूर्ण नगरी राजप्रासाद आदि को अलङ्कत करवाया । वहाँ मोतियों की मालाएँ तोरणद्वार, वाद्ययन्त्र एवं पुष्प समृद्धि आदि आकर्षण के प्रमुख केन्द्र थे । भेरी, वीणा, झांझ, वेणु आदि ने सभी को प्रभावित किया । सुलोचना ने भी स्नान करने के पश्चात् बहुमूल्य वस्त्रालङ्कार धारण किये । जयकुमार भी बारात सहित राजद्वार पहुँचे । काशीवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया, तत्पश्चात् मण्डप में पहुँचने पर पाणिग्रहण का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ ।
एकादशम सर्ग जयकुमार ने सुलोचना के नखशिख सौन्दर्य का अवलोकन किया उसी का सांगोपांग वर्णन किया गया है । मुख, स्तन, त्रिवली, नाभि, नितम्ब, चरणकमल | आदि का रोचक विवेचन हुआ है ।
-
द्वादशम सर्ग - काशी नरेश ने पुराहित के कथन से अपनी पुत्री का हाथ जयकुमार को सौंपते हुए विनम्रतापूर्वक प्रार्थना
अहहाग्रह हाव भाव धात्री मम च प्रेमनिबन्धनैक पात्री । भवतां भुवि लब्धशुद्धजन्मां वर आहेति समे तु मामतन्माम् ॥'
उन्होंने अपनी पुत्री जयकुमार को सौंपा और वर-वधू को शुभाशीष एवं विपुल दहेज से ओत-प्रोत किया । वर-वधू ने अनेक माङ्गलिक पाठों, हवनकुण्डों, मन्त्रोच्चारणों के मध्य