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। 21 सूर्योदय" परमानन्द दास कृत चैमन्यचन्द्रद्रोदय (10 अङ्क), भूदेवशुक्ल कृत धर्मविजय (5 अङ्क) आनन्दराय मङ्खी कृत "विद्यापरिणयन" (7 अङ्क) एवं जीवानन्द (7 अङ्क) आदि सभी प्रसिद्ध प्रतीक नाटक हैं । इसके पश्चात् 17वीं शती में "गोकुलनाथ कृत अमृतोदय" प्रतीक नाटक की रचना की (नल्लादीक्षित ने कुल 5 नाटकों की रचना की जिनमें "जीवन्मुक्ति कल्याण एवं चित्तवृत्तिकल्याण" प्रतीकात्मक नाटक हैं । "शृङ्गारसर्वस्व भाण है तथा सभद्रापरिणय के 5 अङ्कों में अर्जुन के सुभद्रा से विवाह का वर्णन है । इस प्रकार प्रतीकात्मक नाटकों में दार्शनिक, धार्मिक तत्त्वों का समावेश भी मिलता है । प्रतीकात्मक नाटकों के पश्चात् हम कतिपय अन्य नाट्य कृतियों का विवेचन करते हैं । जयदेव ने 7 नाटकों में रामकथा का विवेचन "प्रसन्नराघव" ग्रन्थ में किया । इनके कवित्व से महाकवि तलसी भी प्रभावित हुए 12वीं शती में वत्सराज ने 6 नाट्य कृतियों का प्रणयन किया - "किरातार्जुनीय व्यायोग" कर्पूरचरित (भाण), हास्य चूडामणि (प्रहसन) रुक्मिणी हरण (ईहामृग) त्रिपुरदाह (डिम) और समुद्रमन्थन (समवकार)12 इस प्रकार नाटकों के अतिरिक्त प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम ईहामृग, प्रहसन, वीथि आदि पर भी विपुल साहित्य उपलब्ध होता है - जैन कवि रामचन्द्र ने 12वीं शती में नल विलास, राघवाभ्युदय, यादवाभ्युदव, निर्भयभीम, सत्यहरिश्चन्द्र कौमुदी मित्रानन्द आदि अनेक नाट्य कृतियों की रचना की । इसी समय यशचन्द्र ने "मुद्रित कुमुदचन्द्र" प्रकरण की रचना की शङ्खधर कविराज का "लटकमेलक" प्रहसन अत्यन्त प्रसिद्ध है । विल्हण ने "कर्णसुन्दरी,103 नाटिका और मथुरा दास ने "वृषभानुजा नाटिका में प्रणय कथाओं को प्रस्तुत किया । ये 11वीं शती की कृतियाँ हैं । रम्भामञ्जरी, विलासवती चन्द्रलेखा'05 शृङ्गारमञ्जरी आनन्द सुन्दरी सट्टक कोटि की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं
17वीं शती में उद्दण्डकवि ने "मल्लिकामाकत' 107 प्रकरण की रचना की है । इसके पश्चात् श्रेष्ठ प्रकरण ग्रन्थों में कौमुदी मित्रानय प्रबुद्धरोहिणेय, मुद्रितकुमुदचन्द्र आदि की गणना की जाती है । प्राचीनकाल में विरचित भाण "चतुर्भाणी10 नाम से प्रकाशित हुए। उभयाभि सारिका, पद्यप्राभृतक, धूर्तविट संवाद, पादताडितक क्रमशः वररुचि, ईश्वरदत्त, श्यामनिक, शूद्रक द्वारा विरचित श्रेष्ठ भाण ग्रन्थ हैं । वामनभट्ट वाणकृत, शृङ्गारभूषण" रामभद्रदीक्षित कृत "शृङ्गारतिलक" युवराजकृत " "रससदन" भाण कोटि के उत्कृष्ट रूपक हैं । प्रहसन का भी हमारे साहित्य में गौरवपूर्ण स्थान है । महेन्द्रविक्रमवर्मा का "मत्तविलास कवीराज शङ्खधर का लेटमेलक'12, जगदीश्वर कविशेखर का "धूर्तसमागम", गोपालनाथ चक्रवर्ती का "कौतुकसर्वस्व" कवि तार्किक का "धूर्तरत्नाकार" श्रेष्ठ प्रहसन हैं, जिनमें दुराचारमग्न एवं कामिनी लोलुप धर्मावलम्बियों का रोचकता के साथ पर्दापाश हुआ है । "डिम" कोटि की कृतियों में त्रिपुरदाह, कृष्णविजय, मन्मथोमन्थन, वीरभद्र विजय आदि मुख्य हैं । समुद्रमन्थन, पञ्चरात्र प्रभृति उत्कृष्ट समवकार ग्रन्थ हैं। वीथि में माधवीवकुल, इन्द्रलेखा आदि की गणना होती है । भास के कुछ ग्रन्थ-उरुभङ्ग, कर्णभार, दूतघटोत्कच अंक के अन्तर्गत हैं । प्रतिज्ञायौगन्धरायण, रुक्मिणी हरण ईहामृग के श्रेष्ठ उदाहरण हैं ।
छायानाटक - इसमें रङ्गमञ्च पर पुतलियों की छाया चलती - फिरती दृष्टि गोचर होती है, पात्र सशरीर उपस्थित नहीं होता । ऐसे ग्रन्थों में (सुभटकवि ने 12 वीं शती में) "दूताङ्गद" प्रथम कृति है । 15वीं शती में सुभद्रापरिणय, रामाभ्युदय, पाण्डवाभ्युदय नामक छायानाटक रामदेवव्यास द्वारा लिखे गये हैं।