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नाटक है । इसमें नन्दवंश के सम्राट को चाणक्य द्वारा कूटनीतिपूर्वक पदच्युत करने तथा उसके स्थान पर चन्द्रगुप्त को सम्राट बनाने का लक्ष्य ही कथानक का केन्द्र बिन्दु है । इसमें एक जासूसी उपन्यास के समान आद्योपरान्त रहस्यात्मकता व्याप्त हैं । इसमें विदूषक और नायिका का अभाव होते हुए भी नवीनता मौलिकता एवं प्रगतिशील नाट्यकला के दर्शन होते हैं |
भट्टनारायण ने "वेणीसंहार" नाटक की रचना 7वीं 8वीं शती के मध्यकाल में की। यह महाभारत की घटना पर आधारित वीर रस प्रधान कलाकृति है । कौरवों के द्वारा किये गये अपमान का बदला लेने के लिए द्रौपदी प्रतिज्ञा करती है । कि वह दुःशासन आदि से बदला लिये बिना वेणी बन्धन नहीं करेगी। नाटक के अन्त में भीम दुर्योधन तथा दुःशासन के खून से सने हाथों द्वारा उसकी वेणी को संवारते हैं । यह रचना सभी नाटकीय तत्त्वों से परिपूर्ण है । महाकवि भवभूति ने संस्कृत नाट्य साहित्य को अपनी तीन कृतियों से उपकृत किया - मालती माधव यह 10 अंकों में निबद्ध प्रकरण है । इसमें मालतीमाधव तथा मकरन्द - मदयन्तिका की प्रणय एवं परिणय प्रधान कथा वर्णित हैं । "महावीर चरित" के 7 अङ्कों में राम विवाह से राज्याभिषेक तक की रामायण में आबद्ध कथा प्रतिपादित है । "उत्तररामचरित" में रामायण के उत्तरकाण्ड की कथा को प्रसङ्गानुकूल मौलिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है । यह रचना 7 अटों की है तथा भवभूति की प्रतिभा, प्रकृति प्रेम, संवेदना और नाट्य कला सर्वोत्तम निदर्शन है। भवभूति का समय (650 ई. से 750 ई.) 8वीं शताब्दी माना गया है । इसके पश्चात् उदयन और वासवदत्ता की प्रणय कहानी पर आधारित अनङ्गहर्षकृत "तापस वत्सराज" सुप्रसिद्ध रचना है । इसका नायक उदयन अपनी प्रेयसी वासवदत्ता के वियोग में तपस्वी होने को तत्पर रहता है। इस नाटक में "वेदनामयी घटनाओं की सजीव अभिव्यक्ति है । 8वीं शती में मुरारि ने "अनर्घरागव" 6 अंकों में निबद्ध किया । इसमें रामकथा अभिनव रूप में (नवीन घटनाओं के साथ) प्रस्तुत की गई है । । शक्तिभद्र ने 9वीं शती में "आश्चर्य चूड़ामणि के 7 अङ्कों में रामकथा का विवेचन किया है । यह अद्भुत रस प्रधान कृति है । दामोदर मिश्रकृत "हनुमन्नाटक" दो संस्करणों में उपलब्ध हैं । प्राचीन संस्करण दामोदर मिश्रकृत 14 अङ्कों में है । नवीन संस्करण मधुसूदनदास कृत १ अङ्कों में उपलब्ध होता है । यह रामकथा विषयक नाटक है । इसके पश्चात् 10वीं शती में राजशेखर ने चार नाटकों की रचना की - बालरामायण यह 10 अङ्कों का महानाटक है, इसमें कुल 741 पद्य हैं, जिसमें रामकथा आद्योपरान्त चित्रित हुई है । बालभारत - (प्रचण्डपाण्डव) इसके दो अङ्कों ही उपलब्ध हैं, जिनमें द्रोपदी स्वयंवर, द्यूतक्रीडा एवं चीरहरण तक की कथा मिलती है । विद्धशाल पञ्जिका - इस नाटिका के 4 अङ्कों में राजकीय प्रणय क्रीड़ा वर्णित है। कपूरमञ्जरी - यह 4 अङ्कों का "सट्टक" नामक रूपक है । इसमें चण्डपाल एवं कर्पूर मञ्जरी के विवाह तथा भैरवानन्द की दिव्य शक्ति का विवेचन है। इसके साथ ही दिङ्नाग कृत "कुन्दमाला भी रामकथा की मार्मिक अभिव्यक्ति ही है । इसमें 6 अङ्क
प्रतीक नाटक - कृष्ण मिश्रद्वारा "प्रबोधचन्द्रोदय" एक लाक्षणिक या रूपकात्मक नाटक है । इसमें 6 अङ्क हैं जिसमें अमूर्त भावों की स्त्री-पुरुष पात्रों का प्रतिनिधि बनाकर चित्रित किया है । परवर्ती कवियों ने इसका अनुकरण करते हुए अनेक, प्रतीक्षात्मक नाटकों की रचना की । यशःपाल कृत "मोहराजपराजय (5 अङ्कों) वेदान्तदेशिक कृत "संकल्प