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________________ 22 रेडियो नाटक यह संस्कृत नाटक की नीवन विद्या है। श्री मि. वेलणकर के दो रेडियो रूपक " प्राणाहुतिं " नाम से प्रकाशित हैं । इस संग्रह में " हुतात्मदधीचि एवं रानी दुर्गावती रूपक समाविष्ट 14 है । संवादमाला - इस नवीनविद्या के विकसित करने का श्रेय श्री आनन्दवर्धन रामचन्द्र रत्नपारखी को है । इनकी "संवादमाला" रचना 1957 में निबद्ध हुई, जिसमें 13 संवाद 115 अनूदितनाटक - किसी दूसरी भाषाओं से संस्कृत भाषा में अनुवाद किये नाटक इस श्रेणी में सम्मलित हैं । अनन्त त्रिपाठी ने शैक्सपियर के "ट्वैल्व्थनाईट" का अनुवाद " द्वादशी रात्रि" नाम से किया, जो 1965 में प्रकाशित हुआ । इनके पास " मर्चेण्ट ऑफ वेनिस " के संस्कृत अनुवाद “वेणीशसार्थवाह" की पाण्डुलिपि भी विद्यमान है । त्रिपाठी जी ने ही 'एज यू लाइकइट" का "यथा रोचते तथा" नाम से अनुवाद मनोरमा पत्रिका में प्रकाशित कराया । आर. कृष्णमाचारी ने शैक्सपि के " मिड समर नाईट्स ड्रीम" नाटक का अनुवाद " वासन्तिक स्वप्नाभिधान" नाम से किया है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उपरिकथित विभिन्न विद्याओं के माध्यम से संस्कृत नाटकों की परम्परा समृद्ध हुई । इनके अतिरिक्त 13वीं शती से 20वीं शती तक की कालावधि में प्रणीत अनेक नाट्य कृतियाँ उपलब्ध होती हैं- इनमें प्रतिनिधि रचनाओं के साथ उनकी कृतियों का नामोल्लेख करना समीचीन होगा । विद्यानाथ कृत " प्रतापरुद्री कल्याण", विरुपाक्ष कृत “उन्मत्तराघव' विश्वनाथकृत "सौगन्धिकाहरण", वामनभट्ट वाण कृत पार्वती परिणय, कनकलेखा कल्याण श्रृंगारभूषण । रूपगौस्वामी कृत विदग्धमाधव, ललित माधव, दानकोष कौमुदी । कृष्णदेवराज कृत ऊषापरिणय 11" जाम्बवती कल्याण 17 स्फुलिंग कृत सत्यभामापरिणय, गोकुल नाट्यकृत मुदित मदालसा अमृतोदय, विख्यातविजय । यज्ञनारायण दीक्षित कृत “ रघुनाथ विलास, 18 नीलकण्ठ दीक्षित कृत नल चरित" महादेव कृत अद्भुत दर्पण, 120 राजचूड़मणि कृत कमलिनीकलदंस 121 लोक नाथ भट्ट कृत कृष्णाभ्युदय 22 नृसिंह मिश्र कृत शिवनारायण - भञ्ज महोदय 23 वैद्यनाथ वाचस्पति कृत चित्रयज्ञ 24 पं. मथुरा प्रसाद दीक्षित कृत वीर प्रताप, शङ्करविजय, पृथ्वी राज, भक्तसुदर्शन, भारत विजय 1125 " यतीन्द्र विमल चौधरी कृत नाटकों की संख्या 12 हैं जिनमें महिमामय भारतम्, भारत हृदयारविंदम्, भारत भास्करम् बहुत प्रसिद्ध हैं । उपर्युक्त समस्त नाटकों से सम्पन्न संस्कृत का नाटक साहित्य विपुलता धारण किये हुए हैं । इस बीसवीं शताब्दी में भी निरन्तर नाटकों एवं अनेक भेदों पर भी रचनाएँ प्रतीत की जा रही हैं 1126 विषय स्पष्टीकरण हेतु मैंने केवल प्रतिनिधि नाटकों का सिंहावलोकन प्रस्तुत किया है जिससे कि इस अध्याय में संक्षिप्त इतिवृत्त समाहित हो सके और अध्याय का कलेवर संक्षिप्त रखने के कारण ही प्रत्येक रचना का परिचय सम्भव नहीं हो सका है ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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