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________________ 251 श्रृंगार रस युक्त पद्य रचना द्रष्टव्य है - लेखव्य लीला विजितेन्द्र भार्या, भार्याः परेष्यां सहसा विलोक्य । वसन्त हेमन्तमुखर्तुमध्ये, कन्दर्प चेष्टा कुलितो बभूव ।।15 भाव यह कि सौन्दर्य से प्रभावित करने वाली वर स्त्रियों को देखकर वसन्त, हेमन्त आदि अतुओं में कामुक चेष्टाओं से आकुल हो जाने के कारण रति जाग्रत होने की यथार्थता स्वीकार की है अतः उक्त पद्य में श्रृंगार रस माना जा सकता है। इस प्रकार अन्य रस भी इस रचना में प्रयुक्त हुए हैं । __ छन्दो-वैविध्य साहित्याचार्य डॉ. (पं.) पन्नालाल जैन विरचित "चिन्तामणि-त्रय" के छन्दों में बड़ा लालित्य है । इनमें एक महान् समर्थ कवि की भांति भाषा का सहज व्यवस्थापन दिखाई देता है। साहित्याचार्य महोदय द्वारा प्रणीत "सम्यक् चारित्र-चिन्तामणि" में सत्रह प्रकार के छन्द बद्ध 1072 पद्य हैं । छन्दों में - (1) अनुष्टुप्, . (2) आर्या, (3) इन्द्रवज्रा, (4) उपेन्द्रवज्रा, (5) उपजाति, (6) तोटक, (7) द्रुतबिलम्बित, (8) प्रमणिका, (9) भुजङ्गप्रयात, (10) मन्दाकान्ता, (11) मालिनी, (12) वसन्ततिलका (13) शार्दूलविक्रीडित, (14) शालिनी, (15) स्त्रग्धरा, (16) स्वागता, (17) हरिणी । प्रमुख छन्दों के उदाहरण अधोलिखित हैं - वसन्ततिलका छन्द यह छन्द इस ग्रन्थ में अनेक पद्यों में प्रयुक्त हुआ है - संसार कारण निवृत्ति परायणानां । या कर्मबन्धन निवृत्तिरियं मुनीनाम् । सा कथ्यते विशदबोध धरैर्मुनीन्द्र, श्चाारित्रमत्र शिव साधन मुख्य हेतुः ॥ अनुष्टुप् छन्द यह पण्डित जी का प्रिय छन्द है और यह छन्द इस ग्रन्थ के सर्वाधिक पद्यों में दृष्टिगोचर | होता है। आत्मनो वीरतागत्वं स्वरूपं यादृशं मतम् । तादृशं यत्र जायेत तद् यथाख्यातमुच्यते ॥m उपजाति छन्द उपजाति छन्द का प्रयोग भी इस रचना के पद्यों में प्रयुक्त है - ध्यानानले येन हुताः समस्ता, रागादि दोषा भवदुःखदास्ते । आर्हन्त्यविभ्रा जितमत्र वन्दे, जिनं जितानन्त भवोग्रदाहम् ॥378
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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