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"परीषहजय शतकम्" में विभिन्न स्थलों पर अर्थान्तरन्यास अलङ्कार का प्रयोग हुआ है । इस प्रकार आचार्य श्री के काव्य कौशल, वैदग्ध्य एवं पाण्डित्य का परिचय प्राप्त होता है - निम्नोक्त पद्य अर्थान्तरन्यास अलङ्कार का उदाहरण है -
कठिन साध्य तपोगुण वृद्धये, मति महाहतये गुणवृद्धये । पद विहारिण आगमनेत्रकाः हतदया विमदा भुवनेत्र काः ।।280 हिन्दी पद्य में उपर्युक्त भाव की सजीव अभिव्यंजना हुई है -
कठिन कार्य है खरतर तपना करने उन्नत तप गुण को, पूर्ण मिटाने भव के कारण चंचल मन के अवगुण को। दयावधू को मात्र साथ ले वाहन बिन मुनि पथ चलते,
आगम को ही आँख बनाये निर्मद जिनके विधि हिलते ॥ विशेषोक्ति अलङ्कार भी परीषहजय शतकम् में प्रयुक्त हुआ है - सम्पूर्ण कारणों के उपस्थित रहने पर कार्य न होने के कथन को विशेषाक्ति अलङ्कार कहते हैं - आचार्य मम्मट ने भी इस प्रकार लक्षण किया है -
विशेषोक्तिरखण्डेषु कारणेषु फलावचः 81 परीषहजय शतकम् से उद्धत प्रस्तुत पद्य में विशेषोक्ति अलंकार सन्निविष्ट है -
उपगता अदयैरुपहासतां कलुषितं न मनो भवहा ! सताम् । शमवतां किम् तत् बुधवन्दनं न हि मुदैप्यमुदैजऽनिन्दनम् ।।82
असभ्य, पापियों के द्वारा ऋषियों का उपहास और निन्दा किये जाने पर भी उनकी उज्ज्वलता का नाश नहीं होता, मुनियों को दुष्टों के वचनों से क्रोध भी नहीं आता वे तो समानता को धारण करते हैं और अपने प्रशंसकों द्वारा वन्दि होने पर भी चित्त को चञ्चल नहीं करते । इस प्रकार मुनि मन को चञ्चल करने के कारणों के रहने पर भी कार्यरूप उनका मन अडिग रहता है । अतः यहाँ विशेषोक्ति अलङ्कार प्ररूपित है।
परीषहजय शतकम् में दृष्टान्त अलङ्कार के दर्शन भी हमें यत्र-तत्र होते हैं । दृष्टान्त का सफल और सटीक लक्षण काव्य प्रकाश में इस प्रकार प्रतिपादित हुआ है - दृष्टान्तः पुररेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम् 183
___ अर्थात् जिसमें उपमेय वाक्य और उपमान वाक्य दोनों वाक्यों में इन सबका (उपमेय उपमान और साधारण धर्म) बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव झलका करता है, वह दृष्टान्त अलङ्कार होता है । परीषहजय शतकम् काव्य में समाविष्ट यह पद्य दृष्टान्त अलङ्कार से ओत-प्रोत है -
न हि करोति तृषा किल कोपिनः शुचि मुनीम नितरो भुवि कोपि न । विचलितो न गजो गज भावतः श्वगणकेन सहापि विभावतः ।84
भाव यह कि मुनि लोग स्वाबलम्बी होकर जीवन यापन करते हैं, तृषणा या अन्य किसी भौतिक बाधाओं से अपने को सम्पृक्त न करते हुए आत्मचिन्तन में विलीन रहते हैं। हाथियों के समूह को उनकी चाल से विचलित करने में सौ-सौ कुत्ते पीछे-पीछे भौंककर भी समर्थ नहीं होते। इस प्रकार यहाँ दृष्टान्त अलङ्कार प्रयुक्त हुआ है।