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________________ 221 भावनाशतक में अनेकार्थक शब्दों का भरपूर प्रयोग हुआ है, इसलिए साधारण व्यक्ति को यह ग्रन्थ दुरुह है किन्तु ग्रन्थ की दुरहता को कम करने की दृष्टि से प्रत्येक श्लोक का अन्वय बसन्ततिलका छन्द में हिन्दी अनुवाद किया गया है । बसन्ततिलका छन्द का लक्षण इस प्रकार है - ज्ञेयं वसन्ततिलकं तभजा जगौ ग:41 जिसमें क्रमशः तगण, भगण, दो जगण और दो गुरु वर्ण होते हैं। यह 14 अक्षरों का छन्द है और अष्टम तथा षष्ठ अक्षरों के पश्चात् यति होती है। उदाहरण - “अन्धा विमोहतम में भटका फिरा हूँ, कैसे प्रकाश विन संवर भाव पाऊँ । हे शारदे विनय से द्वय हाथ जोडूं आलोक दे विषय को विषमान छोडूं ॥242 इस प्रकार संस्कृत पद्यों में आचार्य श्री ने आर्या छन्द एवं मुरजबन्ध में प्रयुक्त अनुष्टुप् और हिन्दी पद्यानुवाद में बसन्ततिलका छन्द का उपयोग किया । अत: यह ग्रन्थ अत्यन्त भावपूर्ण और प्रेरणास्पद बन गया है । ३. श्रमण शतकम् __ आचार्य श्री के "श्रमणशतकम्" काव्य में आर्या छन्द का प्रचुर प्रयोग हुआ है। यह छन्द इस रचना में आद्योपान्त विद्यमान है एक उदाहरण प्रस्तुत है - प्रत्ययो यस्य वृत्तं जिने निज चिन्तनतो मनोवृत्तम् । .. तस्य वृतं हि वंत्तं कथयतीतीदमत्र वृत्तम् ।। 243 ४. सुनीतिशतकम् । सुनीतिशतकम् - उपजाति छन्द में निबद्ध रचना है - दानेन भागी भुवि शोभते स, ध्यानेन शान्ते तथा स योगी । निस्सङ्ग - पात्रस्तु निरीहवृत्त्या, चेहा प्रतोली नरकस्य वोक्ता ।।4 इस प्रकार सुनीतिशतक के सभी पद्य उपजाति छन्दों में आबद्ध है । ५. परीषहजय शतकम् आचार्य श्री ने परिषय जय शतकम् काव्य के अन्तिम पद्यों में छन्द परिवर्तन किया है, तद्नुसार अनुष्टुप् और आर्या वृत्तों का प्रयोग किया है । अनुष्टुप् छन्द के प्रत्येक पाद में आठ अक्षर होते हैं इसे श्लोक छन्द भी कहते हैं। अनुष्टुप छन्द क लक्षण आधोलिखित है - पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः । गुरु षष्ठं च जानीयात् शेषेष्वनियमो मतः ॥45 अनुष्टुप् छन्द246 में सभी पादों के पञ्चम अक्षर लघु और षष्ठ अक्षर दीर्घ (गुरु) होते हैं, द्वितीय और चतुर्थ पादों के सप्तम वर्ण भी लघु होते हैं । शेष अक्षरों के लिए विशेष नियम नहीं है । अनुष्टुप् के अनेक भेद भी हैं । परिषहजय शतकम् का अठान्वे वाँ पद्य अनुष्टुप् वृत्त का उदाहरण है -
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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