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________________ -220 पञ्चेन्द्रिय गज . अङ्कश है सुहाते हे मेघ विश्वमदताप तृषा बुझाते ॥33 निरञ्जन शतकम् का अन्तिम पद्य आर्या छन्द में निबद्ध हुआ है । इसमें देव देव शास्त्र गुरु का आचार्य श्री ने स्मरण किया है । आर्या छन्द का लक्षण यह है - यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि । अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या ॥234 अत: आर्या छन्द के प्रथम और तृतीय पदों में 12 द्वितीय और चतुर्थ में 15 मात्राएँ होती हैं । उदाहरण प्रस्तुत है - त्रै विषमयीम विद्यां विहाय ज्ञानसागरजां विषम । सुधा मे म्यात्मविषं नेच्छामि सुकृतनां भुविद्याम् ॥35 आचार्य श्री ने ग्रन्थ के अन्त में मङ्गल कामना की है। २. भावनाशतकम् भावनाशतकम् रचना में आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने आर्या छन्द का प्रयोग अधिकांश स्थलों पर किया है - आर्या के कई उपभेद होते हैं । सबसे प्रासद्ध भेद का लक्षण है - . यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि . . अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या-36 आर्या छन्द के प्रथम और तृतीय पादों में 12, द्वितीय में 18 चतुर्थ में 15 मात्राएँ होती हैं। उदाहरण - विराधनं न रादनं, निदानमस्य केवलं नराधनम् । ददाति सदाशधनं राधनं मुक्ति दाराधनम् ॥” . आचार्य श्री ने प्रत्येक भावना के अन्त में मुरजबन्ध36 का प्रयोग किया है, इसलिए सौ श्लोकों के इस काव्य में 16 श्लोक. तुजबन्ध के हैं, जो अनुष्टप छन्द में प्रयुक्त किये गये हैं - अनुष्टुप् छन्द के प्रत्येक पाद में आठ अक्षर होते हैं इसे श्लोक छन्द भी कहते हैं इसका लक्षण गणों के द्वारा सम्भव नहीं है । "पञ्चमं लघु सर्वत्र सप्तमम् द्विचतुर्थयोः । गुरु : षष्ठं च जानीयात्त् - शेषेष्वनियमो मतः ।। अन् छन्द के सभी पादों में पञ्चम वर्ग लघु और षष्ठ वर्ग गुरु होते हैं । द्वितीय और चतुथ . ' में सप्तम वर्ण भी लघु होते हैं । शेष अक्षरों के लिए विशेष नियम नहीं भावना शतकम् में 16 स्थलों पर अनुष्टप् छन्द की छटा बिखरी हुई है - उदाहरण - दिव्यालोक प्रदानेश दर्शनशुद्धिभास्करः। भव्यजककदा वाशस्पर्श कोऽशुभाकरः ॥240
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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