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________________ 218 निजतनो कर्मता वमतामता, मतिमता समता गमतामता विमल बोध सुधां पिबतां जसा व्यति तं न तृक्षा सुगताज ! सार इस प्रकार तन की ममता दुःखमयी पापों का कारण होती है उसे त्याग कर मनीपिनज शम-दम धारण करते हुए समता में आस्था रखते हैं। निर्मल बौधमय सुधा का निरन्तर पान करने वाले उन्हें तृषा नहीं सताती और वे सुखी जीवन व्यतीत करते हैं । प्राकृतिक प्रकोपों से उत्पन्न भयावह स्थिति का चित्रण करते हुए कवि प्रतिपादित करता है कि ऐसी विषम परिस्थितियों में भी वे अडिग रहते हैं - इस स्थल पर भयानक रस का दृश्य चित्रित किया गया है - नभसि कृष्णतमा अभयानकाः सतडित सजलाश्च भयानकाः अशनिपात तयाव्य चलाश्चलाः स्थिर मटेच्य मुनिं दयचलाचला23 सजल घनघोर काले बादलों की गर्जना, तड़कती बिजली, वज्रापात आदि बाधाएँ जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं । अत: यहाँ भयानक रस का वातावरण निर्मित हुआ है। इसी परिप्रेक्ष्य में बीभत्स रस की उपस्थिति भी अधोलिखित पद्य में दृष्टिगोचर होती विकृत रूप शवादिक दर्शनात पितृवने च गजाहित गर्जनात । अरतिभावमुपैति न कञ्चन समित भाव रतो चतुकञ्चन । हिन्दी अनुवाद - सड़ा-गला शव मरा पड़ा जो बिना गड़ा, अध गड़ा जला, भीड़ चील की चीर-चीर कर जिसे खा रही हिला-हिला दृश्य भयावह लखते, सुनते गजारगर्जन मरघट में किन्तु ग्लानि भय कभी न करते रहते मुनिवर निज घट में। इस प्रकार ग्लानिपूर्ण दृश्य उपस्थित हुआ है, जिसमें बीभत्स रस की अवस्थिति है। . श्रृंगार रस भी परिषह जय शतकम् के कतिपय पद्यों में स्त्री परिषह जय के वर्णन करने में चित्रित हुआ है - पद्यों के शृंगारपरक अंश द्रष्टव्य हैं - मदन मार्दव मानस हारिणी, ललित-लोलक लोचन हारिणी । मुदित-मञ्ज-मतङ्ग विहारिणी, यदि दृशे किम सा स्व विहारिणी ।।25 इसी क्रम में यह पद्य भी द्रष्टव्य है - विमलरोचन भासुर रोचिना, विलसितोत्पल भासुर रोचना । लाल कमल की आभा सी तन वाली है । सुर वनिताएँ नील कमल सम विलसित जिनके लोचन है सुख सुविधाएँ। किन्तु इन प्रति उपेक्षा भाव रखते हुए साधु शील और रूप सम्पन्न समता रूपी रमणी को ही वरण करते हैं - श्रमणतां श्रयता श्रमणेन या त्वरमिता रमिता भुवने नया 20 इस प्रकार उपरोक्त पद्यों में शृंगार रस की अभिव्यक्ति हुई है ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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