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________________ 213 जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, श्री समुद्रदत्त चरित्र एवं अन्य ग्रन्थों में मुनियों के भावपूर्ण उपदेश विविध सर्गों में अंकित हैं वहाँ वेदी शैली उपदेशात्मक हो गयी है। - 16 सर्ग व्याख्यात्मक वैदर्भी शैली भी समस्त काव्यों में यत्र-तंत्र उपस्थित है । यहाँ व्याख्यात्मक वैदर्भी शैली का एक उदाहरण निदर्शनीय है - इसमें स्वयंवर सभा में सुलोचना को जयकुमार के सम्बन्ध में परिचित कराया गया है - (जयकुमार के गुण, शील कुल की व्याख्या है) अवनां ये ये वीरा नीराजन मामनन्ति ते सर्वे । यस्मै विक्रान्तोऽयं समुपैति च नाम तदखर्वे ॥ . . सद्वंशसमुत्पन्नो गुणाधिकारेण भूरिशो नम्रः । चाप इवाश्रितरक्षकः एष च पर तक्षकः क्रमः ।।2 अर्थात्-पृथ्वी के समस्त वीर जिसकी नित्य आरती, उतारते हैं वह यही जयकुमार है जो उत्तम वंश, गुण, विनय से सुशोभित हैं और आश्रितों का रक्षक तथा वैरियों का नाशक है। विवेचनात्मक वैदर्भी शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है - सुदर्शन का मित्र मनोरमा के प्रति सुदर्शन की आकुलता समझकर कहता है - (सुदर्शन | को मनोरमा की प्राप्ति का विवेचन है) सुदर्शनत्वच्चा चकोरचक्षुषः सुदर्शनत्वं गमितासि सन्तुष । तस्या मम स्यादनुमेत्य दो श्रुता किं चन्द्रकान्त नवलावता दुत ॥3 अर्थात्-सुदर्शन । तुम उस चकोरनयना के सुदर्शन बनोगे हृदय में सन्तोष रखते हुए विश्वास करो । वह भी तुम से प्रभावित है क्योंकि कलावान चन्द्रमा से ही चन्द्रकान्त मणि द्रवित होती है । यहाँ माधुर्यगुण, सरलता, विवेच्यता ही विवेचानात्मक वैदर्भी का लक्षण है। विवेचनात्मक एवं व्याख्यात्मक वैदर्भी आचार्य श्री के समस्त काव्यों में परिलक्षित की जा सकती है । संवादात्मक वैदर्भी जयोदय, सुदर्शनोदय, श्रीसमुद्रदत्त चरित्र एवं दयोदय'7 में अत्यल्प स्थलों पर प्रयुक्त हुई है । एक उदाहरण में संवादात्मक वैदर्भी शैली प्ररूपित हैदयोदय का एक रोचक संवाद प्रस्तुत-राजा-महाराज । ' , कथमिवि भग्यते भवता सहसैवेदमम् ।। मन्त्री-महाराज - सुनिश्चितमेवेदमिति जानन्तु भवन्तः । विषान्न भोजनेनेदृशी दशा सज्जाता तयोरिति । राजा - विषान्नमपि कुतः सज्जातमिति ज्ञातुमर्हतिनश्चेतो वृत्तिः । मन्त्री - सोमदत्तनामजामातुर्मारणाय यदन्नं ताभ्यां सम्पादितं तदेव प्रमादात्स्वयमास्वादितमिति ध्येयम् । राजा - एंव वेदस्ति कोऽपि महापुरुषः सोमदत्तोऽत्र आगम्यतां पश्यामि तम् । ।
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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