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________________ 202 छन्द को कवि ने सर्वाधिक प्रयुक्त किया है - वीरोदय", जयोदय, सुदर्शनोदय, श्री समुद्रदत्त चरित्र | दयोदय चम्पू एवं सम्यक्त्व सारं शतकम् में उपजाति छन्द का बाहुल्य मिलता है । छन्दशास्त्र के आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट इस छन्द के समस्त भेदों को कवि ने अपने काव्यों में कुशलता के साथ प्रयुक्त किया है ।" यह छन्द जयोदय काव्य के 758 पद्यों में वीरोदय के 503 सुदर्शनोदय के 138 श्री समुद्रदत्त चरित्र के 134 तथा दयोदय के 29 पद्यों में आया है। यहाँ उपजाति छन्द का एक उदाहरण प्रस्तुत है - यथा : - जिनालय स्फटिकसौधदेशे तारावतारच्छलतोऽप्यशेषे । सुपर्वभिः पुष्पराणस्य तन्त्रौ चितोषहारा इव भान्ति रात्रौ ॥140 यहाँ कुण्डलपुर के जिनालयों का रमणीय चित्रण । वहाँ के मंदिरों की स्फटिक मणियों से सुयुक्त छतों पर नक्षत्रों का प्रतिबिम्ब मनोहारी होता है; जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे देवता पुष्पवर्षा कर रहे हों । यह छन्द प्रायः नगरं वर्णन, सौंन्दर्य वर्णन, युद्ध वर्णन, वसन्त वर्णन के प्रसङ्गों में मिलता है । · अनुष्टुप् छन्द४९ यह छन्द जयोदय के 303 वीरोदय के 178 सुदर्शनोदय के 148 श्री समुद्रदत्त चरित्र के 46 दयोदय चम्पू के 108 तथा सम्यक्त्वसार शतकम् के अनेक पद्यों में प्रयुक्त हुआ है। प्रवचनसार कवि की अनूदित कृति है जिसमें प्राकृत भाषा की गाथाओं को संस्कृत भाषा में अनुष्टुप् छन्दों में निबद्ध किया है - यहाँ सम्यक्त्वसार शतकम् ग्रन्थ का एक पद्य उदाहरणार्थ प्रस्तुत है - अनेन पुनरेतस्य घातिकर्म प्रणाशतः । आत्मनोऽस्तु च परमोपयोगी विश्वस्तुवित् ॥12 सभी ओर से विरक्त चित्त में विश्व के सभी पदार्थ अपने यथार्थ रूप में प्रतिबिम्बत होते हैं । प्रत्येक काव्य का एक-एक पद्य अनुष्टुप् छन्द के उदाहरणार्थ 13 प्रत्येक काव्य का एक वियोगिनी छन्द : 'विषमे ससजा गुरुः समे सभरा लोऽथ वियोगिनी' । इस छन्द के प्रथम और तृतीय पाद में दो सगण, एक जगण और गुरु वर्ण होते हैं । इसे सुन्दरी छन्द भी कहते हैं । आचार्य श्री के सभी प्रमुख काव्यों में वियोगिनी छन्द अभिव्यञ्जित है । विवाहोत्सव'", कन्या की विदाई, नदी वर्णन, पुत्रोत्पत्ति आदि प्रसङ्गों में इस छन्द के दर्शन होते हैं । एक पद्य उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं श्रियोधरा थाष्टमदेवधाम - गता ततोऽस्या उदरं जगाम । परस्परस्नेहवशेन बाला जन्माभवन्नाम च रत्नमाला 1146
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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