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एक उदाहरण द्रष्टव्य है -
चराश्च फूत्कारपराः शवानां प्राणा इवाभूः परितः प्रतानाः । पित्सन्सपक्षाः पिशिताशनायायान्तस्तदानीं समरो वरायाम ॥°
यहाँ रस का आश्रय एवं आलम्बन विभाव मृत पुरुष हैं, उनका मांस, रुधिर उद्दीपन विभाव है । मांस की खींचना, नोंच-नोंच कर खाना, चोंचमारना एवं देखने वालों को दुर्गन्ध वश नाक बन्द करना, थूकना आदि अनुभाव हैं तथा घृणा, आदि सञ्चारी भाव हैं ।
वात्सल्य रस : इस रस की अभिव्यक्ति वीरोदय" जयोदय, सुदर्शनोदय', श्री समुदत्त चरित्र एवं दयोदय चम्पू में सर्वतोभावेन हुई है । एक उदाहरण प्ररूपित है - दयोदय चम्पू के तृतीय लम्ब में वर्णन है कि गुणपाल से. से चालक सोमदत्त के वध का पारिश्रामिक लेकर भी उसे नहीं मारता - क्योंकि उसे बालक से स्नेह है -
अयन्तु तावद् बोधो बालःसहजतयैवोच्छिष्टा स्वाद नेन स्वोदरजलां
शमयितुं प्रवृत्तः सुलक्षणश्च प्रतिदृश्यतेऽतः कथं मारणीयतामर्हतीति।
तत्पश्चात् जङ्गल से गोविन्द ग्वाल उसको अपने घर ले गया, उसकी पत्नी भी पुत्र पाकर प्रसन्न हो उठी, -
धनश्रीरषितेन मौक्तिकेन शुक्तिरिवादरणीयतां कामधेनुरिव वत्सेन श्रीभरितस्तन तकुद्याममालेव वसन्तेन प्रफुल्लभावं समुद्रबेलेव
शशधरेणातीवोल्लास सद्भावभुदाज हार-हार लसित वक्षः स्थला।
प्रथम प्रसङ्ग में चाण्डाल आश्रय, सोमदत्त आलम्बन उसका सरल, सुशील सौन्दर्य उद्यीपन प्रहार न करना स्नेह से देखना अनुभाव और हर्ष, तर्क, रोमाञ्च, सञ्चारी भाव है। द्वितीय प्रसङ्ग में आश्रय, सोमदत्त आलम्बन ग्वाल का नि:सन्तान होना उद्दीपन, स्नेह अनुभाव। हर्षादि सञ्चारी भाव हैं । -
छन्दो-वैविध्य : ___ आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने अपने काव्यामृत का रसास्वादन संस्कृत के प्रचलित | एवं अप्रचलित सभी प्रकार के 46 छन्द प्रयुक्त करते हुए कराया है । इन छन्दों में 17 छन्द प्रचलित एवं 29 छन्द अप्रचलित हैं । उपजाति 61 कवि को सर्वाधिक प्रिय रहा है । इसके पश्चात् उनके काव्यों में क्रमश: अनुष्टुप्, वियोगिनी, रथोद्धता, मात्रात्मक, द्रुतविलम्बित, वंशस्थ, आर्या, स्वागता, वसन्ततिलका, उपेन्द्रवज्रा, मालभारिणी, शार्दूलविक्रीडित, इन्द्रवज्रा, भुजङ्गप्रयात आदि की प्रस्तुति है ।
यहाँ पर उनके काव्यों में प्रयुक्त प्रमुख छन्दों का सोदाहरण विवेचन प्रस्तुत है।
वीरोदय महाकाव्य के 988 पद्यों के 18 प्रकार के छन्दों में निबद्ध किया है । जयोदय में 46 प्रकार के छन्द हैं, सुदर्शनोदय में 17 प्रकार के छन्द प्रयुक्त हैं, श्री समुद्रदत्त चरित्र 13 प्रकार के छन्दों में निबद्ध है। 'सम्यक्त्व सार शतकम्' अनेक प्रकार के छन्दों से संयुक्त है । 'प्रवचनसार' और 'मुनिमनोरञ्जन शतक' शार्दूलविक्रीडित छन्दों में आबद्ध ग्रन्थ हैं । उपजाति यह छन्द आचार्य श्री को सर्वाधिक प्रिय था क्योंकि अपने काव्यों में उपजाति