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स्वयंवर मण्डप में सुलोचना द्वारा लज्जावत अधोमुखी होकर जयकुमार के गले में वरमाला पहनाने और रोमाञ्चित होने का निरूपण है -
तस्योरसि कम्पकरा मालां बाला लिलेख नतवदना । आत्माङ्गी करणाक्षर मालामिव निश्चलामधुना ॥ सम्पुलकिताङ्ग यष्टेरुदृगीर्वाणीव रेजिरे तानि ।
रोमाणि बालभावाद् वरश्रियं द्रष्टुकुत्कानि ॥5 यहाँ जयकुमार और सुलोचना रस के आश्रय और आलम्बन विभाव हैं । स्वयंवर मण्डप, परस्पर सौन्दर्य दर्शन, एकान्त होना, इत्यादि उद्दीपन विभाव है । स्तम्भित, रोमाञ्चित होना लज्जा, हर्ष आदि संचारी भाव है । इस प्रकार यहाँ संयोग शृंगार है । आचार्य श्री के किसी भी ग्रन्थ में वियोग शृंगार का विवेचन नहीं हुआ है ।।
अद्भुत रस : यह रस प्रमुख रूप से वीरोदय, सुदर्शनोदय" में ही विद्यमान है। यहाँ सुदर्शनोदय से एक पद्य उदाहरणार्थ निदर्शनीय है - अष्टम सर्ग में राजा की आज्ञानुसार जब चाण्डाल, सुदर्शन के गले में तलवार का प्रहार करता है तब वह प्रहार उसके गले की माला बनकर कोई कष्ट नहीं पहुँचादा इसे देखकर उपस्थित जनसमूह हतप्रभ रह जाता है -
कृथान्, प्रहारान् समुदीक्ष्य हाराधितप्रकाशस्तु विचारधारा । चाण्डाल चेतस्युदिता किलेतः सविस्मेये दर्शन सच्चयेऽतः ॥ अहो ममासिः प्रतिपद्यनाशी किलाहिराशी विष आः किमासात् ।
नृपालकल्पः सुतरामनल्प-तूलोक्ततुल्यं प्रति कोऽय कल्पः ॥18 ___ यहाँ चाण्डाल और जनसमूह रस का आश्रय है । सुदर्शन आलम्बन विभाव हैं। तलवार के प्रहार का अप्रभावी होना उद्यीपन विभाव हैं । रोमाञ्च अङ्गली दांतों पर रखना, एकटक देखना आदि अनुभाव और जड़ता, वितर्क, आवेग आदि सञ्चारी भाव हैं ।
हास्य रस : यह रस वीरोदय, जयोदय,” काव्यों में भी प्राप्त होता है । उदाहरणार्थ वीरोदय के सप्तम मर्गा (जूब) में भगवान् महावीर के अभिषेक के लिए जाते हुए स्वर्ग में इन्द्र का ऐरावत हाथी सूर्य को कभल समझकर सूण्ड से उठा लेता है किन्तु उसकी उष्णता का अनुभव होने पर झटके के साथ छोड़ देता है । जिसे देखकर देवतागण हंसते हैं- यहाँ हास्य की छटा निदर्शित है -
__ अरविन्दधिया दधद्रविं पुनरैरावण उष्णसच्छविस् ।
धुतहस्त तयात्तमुत्यजन्ननु पद्धास्यं हो सुरव्रजम् ॥२० यहाँ देवगण हास्य रस के आश्रयहैं । ऐरावत हाथी आलम्बन विभाव तथा उसकी भ्रमपूर्ण चेष्टा उद्दीपन विभाव है । मुख का फैलना आदि अनुभाव तथा हर्ष, सञ्चारी भाव हैं ।
करुण रस : यह रस वीरोदय श्री समुद्रदत्त चरित्र, दयोदय चम्पू में विभिन्न अवसरों पर निदर्शित