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________________ 198 शान्तरस की अभिव्यञ्जना दृष्टव्य है- यहाँ राजा चक्रायुध द्वारा संसार और जीवन की नश्वरता पर विचार किया गया है। वह राज्य भी त्याग देता है। - रुचिकरमुकुरे मुख मुच्छरन्नथ कदापि स चक्रपुरेश्वरः । कमपि केशमुदीक्ष्य तदासितं समवदमदूतमिवोदितम् ॥ ननु जरा पृतना यमभूपतेर्मम समीपभुवच्चितुमीहते । बहुगदाधिकृतेह तदग्रतः शुचि निशानमुदेति अदो । तरुणिमोपवनं सुमनोहरं दहति यच्छमनाग्निरतः पुरम् । भवति भस्मकलेव किलासको पलितनामतया समुदासकौ ॥ इसी प्रकार षष्ठ, सप्तम, अष्टम एवं नवम सर्गों में शान्तरस का बाहुल्य परिलक्षित होता है 5. दयोदय चम्पू - दयोदय चम्पू के द्वितीय लम्ब एवं सप्तम लम्ब में शान्तरस का विशेष वर्णन हुआ है । द्वितीय लम्ब में उपलब्ध दृश्य निम्नलिखित हैं-- मृगसेन: प्रत्युवाच, भोभद्रे, मार्गे गच्छताऽद्य मया दरिद्रेण निधिरिवैको महात्मा समवाप्तः । यस्य स्वरूपमिदंसमानसुख-दुःखः सन् पाणिपात्रो दिगम्बरः । समान सुख - दुःख सन् पाणिपात्रो दिगम्बर : । निःसङ्गों निष्पृहः शान्तो ज्ञानध्यानपरायणः ॥ सद्य श्मशानं निधनं धनं च विनिन्दनं स्वस्य समर्चनं च । सकण्टकं पुष्पमयञ्च मच्च, समानमन्तः करणें समच्चन् ॥ शरूयेयमुर्धो गगनंं वितानं दीपो विधुर्मञ्जुभुजोपधानम् । मैत्री पुनीता खलु यस्य भार्या तमाहुख सुखिनं सदार्याः ॥ यहाँ सुख-दुःख, भवन - श्मशान, स्तुति-निन्दा, धनी - निर्धनी-पुष्प कण्टक आदि के प्रति समान वृत्ति रखने वाले किसी निष्कांम तपस्वी का चारित्रिक मूल्याङ्कन किया गया है। इसी प्रकार सप्तम लम्ब में भी विवेचन है सोमदत्त ने एक मुनिवर को देखा और सत्कार करते हुए उनके प्रवचनों से प्रभावित होकर सभी परिग्रहों का त्याग कर दिया और दिगम्बर मुनि बन गया । विषा एवं वसन्तसेना शान्तरस के आश्रय हैं। यथार्थतत्त्व का ज्ञान आलम्बन विभाव, मुनिवर का उपदेश एवं उनकी वेशभूषा उद्दीपन विभाव हैं विरक्त होकर मुनि बनना अनुभाव है एवं निर्वेद, हर्ष इत्यादि सञ्चारी भाव हैं कान्तारे चतुष्पथसमन्विते । संरुद्धमतीव दुरतिक्रमैः ॥ विषा - वसन्तसेने - एकमेवशाटकमात्रविशेषमार्याव्रतमङ्गचक्रतुः ।" इस प्रकार दयोदय का अन्तिम भाग शान्तरसपूर्ण है । अहोसंसार मार्गत्रयन्तु श्रृंगार रस : यह रस वीरोदय," जयोदय 2 सुदर्शनोदय, 3 और दयोदय चम्पू, 14 में अनेक स्थलों पर आया है । यहाँ “जयोदय महाकाव्य" से अवतरित एक उदाहरण प्रस्तुत है - इसमें
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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