SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम अध्याय बीसवीं शताब्दी के जैन काव्यों का साहित्यिक एवं शैलीगत अध्ययन प्रास्ताविक : संस्कृत काव्य के विकास में बीसवीं शताब्दी के जैन मनीषियों के योगदान को रूपायित करने वलो प्रस्तुत शोध प्रबन्ध के पञ्चम अध्याय में सन्दर्भित शताब्दी में विधिवत् जैन काव्यों का साहित्यिक एवं शैलीगत अध्ययन प्रस्तुत है । ___इस शताब्दी में विरघित जैन संस्कृत काव्य में विविध प्रकार से साहित्यिक सौन्दर्य एवं शैलीगत वैशिष्ट्य विद्यमान है । काव्य शास्त्र की सभी विशेषताएँ इन ग्रन्थों में अभिव्यजित हुई हैं । साहित्यिक अध्ययन के लिए इस शताब्दी के प्रत्येक रचनाकार की रचनाओं में निम्नलिखित बिन्दुओं को दृष्टिपथ में रखकर विवेचना की गई है - 1. रस, 2, छन्द, 3. अलङ्कार, 4. गुण, 5. ध्वनि, 6. काव्यशास्त्रीय विविध प्रसङ्ग, और 7. शैलीगत विशिष्ट्य । इस निष्कर्ष पर बीसवीं शताब्दी के संस्कृत जैन काव्यों का परीक्षण पूर्वक मूल्याङ्कन किया है । यथाक्रम वरिष्ठता और रचनाधर्मिता की प्रौढ़ता के आधार पर पूर्वोक्त तृतीय एवं चतुर्थ अध्यायों में विश्लेषित विन्यास क्रम को ही यहाँ इस पञ्चम अध्याय में भी स्वीकार किया गया है। सर्वप्रथम जैनमुनि आचार्य प्रवर ज्ञान सागर की रचनाओं का साहित्यिक एवं शैलीगत अध्ययन प्रस्तुत है - आचार्य ज्ञानसागरजी की रचनाओं का साहित्यिक एवं शैलीगत अध्ययन : आचार्य ज्ञानसागर जी की काव्यसाधना वैदुष्यपूर्ण एवं साहित्यिक तत्त्वों से मण्डित है । उनके समस्त काव्यों का अनुशीलन करने पर कहा जा सकता है कि कविदृष्टि की विशाल अनुभूति आपके चिन्तन में है । साहित्यिक दृष्टि से आ. ज्ञानसागर विरचित ग्रन्थों की समीक्षात्मक अध्ययन अनलिखित है - साहित्यिक अध्ययन - साहित्यिक अध्ययन के अन्तर्गत रस, छन्द, अलङ्कार एवं वर्ण्यविषय का अध्ययन प्रस्तुत है । आचार्य श्री के संस्कृत भाषा में निबद्ध काव्यों ग्रन्थों की साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत है। रस - "रस" काव्य का आधारभूत तत्त्व है - साहित्य शास्त्र के विभिन्न आचार्यों | ने उसे काव्य की आत्मा निरूपित किया है तथा रस सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा की है । रस की सत्ता काव्य में सर्वोपरि है । भारतीय काव्य शास्त्र में आठ रसों' की गणना नाट्यशास्त्र के अनुसार की जाती रही, किन्तु आचार्यों ने शान्तरस को नवम रस के रूप
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy