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________________ 182 गुलाबचंद्र जैन (प्राचार्य, श्री दिगम्बर संस्कृत कालेज, जयपुर) द्वारा रचित संस्कृत रचना का अनुशीलन 'तान् धर्मसागर गुरून् शिरसा नमामः'१३४ (श्री धर्मसागराचार्यस्य स्तुति पञ्चकम्) - आकार - 'तान् धर्मसागर गुरून् शिरसा नमामः' (श्री धर्मसागराचार्यस्य स्तुति पन्चकम्रचना संस्कृत के पांच श्लोकों में आबद्ध स्फुट काव्य है । ___ नामकरण - आचार्य श्री धर्मसागर महाराज को प्रत्येक पद्य की अन्तिम पङ्क्ति में नमन के आधार पर ही रचना का नामकरण 'तान् धर्मसागर-गुरून् शिरसा नमामः' बहुत उपयुक्त है। रचनाकार का उद्देश्य - आचार्य प्रवर के प्रति विशेष भक्तिभाव ही इस कृति के सृजन का प्रधान उद्देश्य है । अनुशीलन - अपने आचार-विचार से अपने शिष्यों को पवित्रता की प्रेरणा देने वाले आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज त्रिगुप्ति, पञ्चमहाव्रत, दशधर्मों का परिपालन करते हैं, और रागादि दोषों एवं मायादिशल्यों से परे, वे रत्नत्रय के उपदेशों से जीवों का कल्याण करते हैं । आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के ऐसे सुशिष्य आचार्य धर्मसागर को साष्टाङ्ग प्रणाम करता हूँ। 'श्रीमती मिथिलेश जैन, मवाना, (मेरठ) उ. प्र. द्वारा रचित संस्कृत रचना का अनुशीलन' तं धर्मसिन्धु गुरूवर्यमहं नमामि ३८ आकार - "तं धर्मसिन्धु गुवर्यमहं नमामि" रचना छह श्लोकों में निबद्ध स्फुट काव्य नामकरण - प्रस्तुत कृति में गरूवर धर्मसागर जी महाराज को सादर नमस्कार किये जाने की विवेचना के कारण 'तं धर्मसिन्धु गुरूवर्यमहं नमामि' यह नामकरण सर्वथा उचित है । रचनाकार का उद्देश्य - रचयित्री की अपने आराध्य आचार्य श्री के प्रति अपार श्रद्धा एवं भक्तिभाव ही इस कृति के सृजन का मूलाधार है । अनुशीलन - है धर्मसागर गुरूवर आपको सादर नमन है । आप संसार का कल्याण चाहने वाले, करुणानिधान, शान्तिसिन्धु, उदारहृदय, सर्वात्मा, मुनिश्रेष्ठ हो । हे गुणी, मनस्वी, विद्वान्, दिव्यदेहप्राप्त, दिगम्बर, विरक्त, रत्नत्रययुक्त महात्मा आपको अहर्निश सादर नमन है। पं. बिहारी लाल शर्मा 'मंगलायनतम् - गद्यकाव्य' __भगवान् महावीर का जीवन चरित पद्य-काव्य के रूप में अनेक आचार्यों एवं लेखकों ने लिखा है किन्तु बाण की कादम्बरी, वादीभसिंह की गद्यचिन्तामणि, दण्डी के दशकुमार चरित आदि संस्कृत गद्य रचनाओं की तरह किसी भी लेखक ने महावीर का जीवन चरित अंकित नहीं किया । इसी विचार से प्रेरित होकर भगवान् महावीर का सर्वोदयी जीवन चरित
SR No.006275
Book Title20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendrasinh Rajput
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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