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श्री व्रजभूषण मिश्र "आक्रान्त" श्री कवि आक्रान्त ने गुरु गोपाल दास वरैया को अज्ञान अन्धकार को नाश करने के लिए सूर्य की उपमा दी है । विद्या और विवेक रूपी सागर में डुबकी लगाने वालों में प्रायः सभी उनके गुणों का स्मरण करते हैं । कवि ने संस्कृत पद्य में अपने विचार व्यक्त किये हैं -
गोपालदास गुरुवर्य महोदयाना, मज्ञानतामसविनाशन
भास्कराणाम् । विद्याविवेक जलधौ सुनिमज्जितानां,
चेतांसि नः कतिचिदेव गुणान् स्मरामि ॥ प्रस्तुत रचना में नौ श्लोक हैं 133 कवि ने इनमें श्री वरैया जी की विशेषताओं का सरसतापूर्वक उल्लेख किया है ।
श्री वैरया जी का जीवन थोड़ा रहा, परन्तु वह लघु जीवन भी लोकोपकार में ही लगा। वे समस्त शास्त्रों में निपुण थे । बुद्धिमानों की वे सुरक्षा किया करते थे । जन-जन को निः स्वार्थ भाव से लाभ पहुँचाते थे । कवि ने इन विचारों को निम्न प्रकार व्यक्त किया है -
ये सर्वशास्त्र निपुणाः सुधियः सुरक्षा, निःस्वार्थ भावजनलाभरताः सदा स्युः । येषां समस्तलघुजीवनमेव नित्यं,
लोकोपकार करणे च समर्पितं यत् ॥ उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किये गये इन श्लोकों में कवि ने अपने विचारों को बोधगम्य भाषा में व्यक्त किया है । पूर्ण रचना में भाषा का माधुर्य है ।
"श्री इन्द्रलाल शास्त्री" आपका -जन्म 21 सितम्बर सन् 1897 में जयपुर में हुआ था । श्री मालीलाल जी आपके पिता और श्री मति हीरादेवी आपकी माता थी । जब आप दो वर्ष के थे, आपके पिता का देहासवान हो गया था । 9 वर्ष की अवस्था में बड़े भाई का और 12 वर्ष की अवस्था में मातृवियोग सहन कर अड़तालीस वर्ष की उम्र में आपको पनि लाड़लीबाई का वियोग भी सहन करना पड़ा था ।
आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हुए आपने शास्त्री, साहित्याचार्य परीक्षाएँ उत्तीर्ण की थीं । विद्यालङ्कार "धर्म दिवाकर तथा धर्मवीर जैसी उपाधियों से भी आप विभूषित हुए थे। जयपुर राज्य में देव स्थान विभाग के आप अधिकारी रहें । मथुरा, केकड़ी, लाडनूं तथा जयपुर के महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य भी किया ।
आपने संस्कृत तथा हिन्दी साहित्य की यथेष्ट सेवा की है। लगभग 20 पुस्तकें आपकी मौलिक रचनाएँ हैं । अनेक पुस्तकों का पद्यानुवाद भी आपने किया है 134 आपकी एक स्फुट रचना अनुष्टुप छन्द में निर्मित है ।35 इस रचना में बीस श्लोक हैं । कवि ने इन श्लोकों में मुनि चन्द्रसागर की जीवन झाँकी चित्रित की है। प्रस्तुत रचना के दो पद्य उदाहरणार्थयहाँ भी प्रस्तुत किये जा रहे हैं ।
एक पद्य में कवि ने मुनि की दीक्षा स्थली, दीक्षा गुरु, दीक्षा नाम और पर्वनाम का एक साथ उल्लेख किया है -